ऋषि मंद्व्य को एक राजा ने चोरी के आरोप में सुली पर चड़ा दिया था लेकिन कई दिनों तक सुली पर लटकने के बाद भी उनकी मृत्यु नहीं हुई इस पर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने अपने निर्णय पर फिर विचार किया । तब राजा को ज्ञात हुआ कि उसने गलत इंसान को सुली पर चढ़ा दिया है । राजा ऋषि से माफी मांगता है और तब उसके बाद ऋषि की मृत्यु हो जाती है ।
जब ऋषि मंदव्य यमलोक पहुंचते है तो वह यमराज से पूछते है कि उनको इतनी भयानक सजा क्यों दी गई है? तब यमराज ने बताया कि जब वह 12 वर्ष के थे तब उन्होंने एक पतंगे को सुई से मार दिया था ,यह सुन ऋषि को अत्यंत क्रोध आता है और वह कहते है कि तब वह बालक थे और ज्ञान का अभाव था ये सजा न्याय नहीं है । तत्पश्चात उन्होंने यमराज को श्राफ दिया कि उनको पृथ्वी पर अछूत के घर जन्म लेना पड़ेगा । इसके कारण यमराज का ही विदुर के रूप में एक दासी से जन्म हुआ ।
विदुर को कृष्ण से कम आंकने की गलती किसी ने नहीं की जब वे अपनी बात रखते थे तो सभी बड़े ध्यान से सुनते थे । दुर्योधन को लेकर कई बार उन्होंने धृतराष्ट्र को सलाह दी थी परन्तु उसने उनकी एक ना सुनी । दुर्योधन को जब विदुर युद्ध ना करने की सलाह देते है तो वह उनसे खफा हो जाता है और बातों बातों में उनको कौआ और गीदड़ बोल देता है । विदुर इस बात से बहुत नाराज़ हो जाते है और गुस्से में आकर अपना चमत्कारी धनुष तोड़ देते है और प्रण लेते है कि वह युद्ध नहीं करेंगे । विदुर धृतराष्ट्र को भी सलाह देते है कि दुर्योधन आपके कुल को खत्म करने के लिए पैदा हुआ है ,परन्तु किसी ने उनकी बात ना मानी।
विदुर को पांडव हमेशा से प्रिय थे इसलिए असंभव था कि महात्मा विदुर पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ते । किन्तु ये बात सत्य है कि अगर विदुर लड़ते तो युद्ध के मैदान में इनसे शक्तिशाली कोई योद्धा नहीं हो सकता था ।
अगर पूरे महाभारत में सबसे शक्तिशाली योद्धा कोई था तो वह विदुर थे ।
वे अगर चाहते तो अपने चमत्कारी धनुष से एक तरफ की सेना को पलभर में खत्म कर सकते थे ,लेकिन उनको भलीभांति पता था कि अगर मुझको को लड़ना भी पड़ा तो कौरवों की तरफ से लड़ना होगा ,तभी शायद उन्होंने युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया था ।
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