काफी तर्कसंगत प्रश्न है कि आखिर शून्य की खोज अभी बाद में हुई तो लोग 10 सिर वाले रावण, 100 कौरवों या अन्य संख्याओं की गणना कैसे संभव किये? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें इतिहास का अध्ययन करना होगा लेकिन इतिहास के सागर में डुबकी लगाने से पहले हमें अविष्कार (Invention) और खोज (discovery) के अंतर को समझना होगा। किसी नई विधि, रचना या प्रक्रिया के माध्यम से कुछ नया बनाना अविष्कार कहलाता है तथा खोज का अर्थ होता है किसी ऐसी चीज को समाज के सामने लाना जिसके विषय में समाज को जानकारी ना हो परन्तु वह हो। एक उदाहरण के माध्यम से समझिए कि न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की खोज की अर्थात गुरुत्वाकर्षण न्यूटन के पहले भी था लेकिन समाज उसके विषय में जानता नहीं था। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को न्यूटन की खोज कहा जाएगा न कि अविष्कार।
कथित तौर पर शून्य की खोज करने वाले आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में तथा देहांत 550 ईस्वी में हुआ और रामायण तथा महाभारत का काल इससे बहुत पुराना है। वर्तमान में हिंदी भाषा का लेखन कार्य देवनागरी लिपि में होता है। इससे पहले की लिपि ब्राह्मी लिपि मानी जाती है। लगभग ई. 350 के बाद ब्राह्मी की दो शाखाएं हो गईं एक उत्तरी शैली तथा दूसरी दक्षिणी शैली। देवनागरी को नागरी लिपि के नाम से भी जाना जाता था। यह लिपि ब्राह्मी की उत्तरी शैली का विकसित रूप है।
प्राचीन काल में भारत सहित विश्व के अन्य तमाम देशों में भी उनकी अपनी संख्या प्रणाली विकसित थी जैसे भारत में संस्कृत में और रोमन साम्राज्य में रोमन में इसी तरह अन्य साम्राज्य में अन्य संख्या प्रणाली विकसित थी।
रोमन गिनती i, ii ,iii ,iv ,v........ क्रमशः 1,2,3,4,5.....हैं।
आप जब बड़े हुए तो आपको कौन बताया कि आपका पिता यह है जो आपका पिता है अर्थात आप अपने जन्मदाता को कैसे पहचाने ?
जाहिर सी बात है कि परिवार वालों ने या फिर विशेषकर माँ ने बताया कि ये आपके पिता हैं।
बस ठीक उसी तरह शून्य की खोज के पहले हमारे ऋषियों, मनीषियों ने हमें बताया कि एकः अर्थात प्रथमा, द्वि अर्थात द्वितीया , त्रि अर्थात तृतीया.............. और बाद में जब शून्य की खोज हुई तो हम जान पाए प्रथमा=1,द्वितीया=2,तृतीया=3...............
चूँकि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और तमाम हिंदू धर्म ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं और उसमें संख्याएं भी संस्कृत में लिखी हुई हैं इस प्रकार पहले हम संख्याओं को संस्कृत के रूप में जानते थे बाद में जब शून्य की खोज हुई तो हम संख्याओं को अंकों के रूप में जाने लगे।
आप कोई भी प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथ देख सकते हैं जिसमें से लिखा होगा प्रथम अध्याय ,द्वितीय अध्याय ,तृतीय अध्याय, चतुर्थ अध्याय इसी तरह से अध्ययन की गणना की गई है जिनकी भी गणना की गई संस्कृत भाषा में की गई है रावण के 10 सिर अर्थात दशानन 10 को बताने के लिए दश को निर्धारित किया गया।
बस ठीक इसी तरह कौरवों की गिनती के लिए शत अर्थात 100 को निर्धारित किया गया।
आप पांडवों से क्या आशय लगाते हैं?
पाण्डव अर्थात 5 भाई
कुछ संस्कृत की गिनतियों के माध्यम से आप समझ सकतें हैं
० - शून्यम्
१ - एकः (पुल्लिंग), एका (स्त्रीलिंग) , एकम्(नपुंसक लिंग)
२ - द्वौ, द्वे, द्वे
३ - त्रयः,तिस्रः,त्रीणि
४ -चत्वारः चतस्रः, चत्वारि
५ - पंच
६ - षट्
७ - सप्त
८ - अष्ट:
९ - नव
१० - दश
११ - एकादश
१२ - द्वादश
१३ - त्रयोदश
१४ - चतुर्दश
१५ - पंचदश
१६ - षोडश
१७ - सप्तदश
१८ - अष्टादश
१९ - नवदश/ऊनविंशतिः/एकोनविंशतिः
२० - विंशतिः
२१ - एकविंशतिः
२२ - द्वाविंशतिः
२३ - त्रिंविंशतिः
२४ - चतुर्विंशतिः
२५ - पंचविंशतिः
२६ - षडविंशतिः
२७ - सप्तविंशतिः
२८ - अष्टविंशतिः
२९ - नवविंशतिः/एकोनत्रिंशत्/ऊनत्रिंशत्
३० - त्रिंशत्
४० - चत्वारिंशत्
५० - पंचाशत्
६० - षष्टिः
७० - सप्ततिः
८० - अशीतिः
९० - नवतिः
१०० - शतम्
१००० - सहस्रम्
१००००० - लक्षम्
१००,००,००० - कोटि
आधा - अर्धम्
एक पाव - पादम्, अर्धार्धम्
पूरा - पूर्णम्
अनन्त - अनन्तम्
कुछ मूड और जड़ बुद्धि लोग हैं जो संस्कृत भाषा को और हिंदू धर्म को गलत साबित करना चाहते हैं और उन्हें बदनाम करने के लिए अनेक कुतर्क भरे सवाल पूछते हैं ।
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