Wednesday, November 20, 2019

परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन क्या जब पहली बार में क्षत्रिय सारे ख़त्म हो गए तो बाकी के 21 बार कैसे किया?

भगवान परशुराम अपने क्रोध और आक्रामकता के लिए जाने जाते है, कहा जाता है कि वे विष्णु भगवान के छठे अवतार थे।

परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत में देखने को मिलता है। उन्होंने अपने जीवन काल में 21 बार क्षत्रियों का नाश किया था। इस 21 बार क्षत्रियों का नाश किया और पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है।

आइये जानते है पौराणिक कथा के बारे में।

इस पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि जमदग्नि और रेणुका को जिस पुत्र की प्राप्ति होगी वो पुत्र क्रूर कर्मी होगा।

जब जमदग्नि और रेणुका के घर परशुराम का जन्म हुआ तो किसी ने नहीं सोचा था कि परशुराम अत्यंत पराक्रमी होंगे और 21 बार क्षत्रियों का संहार करेंगे।

दरअसल एक बार राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन शिकार करते हुए जमदग्नि के आश्रम में पहुँच गया। मुनि जमदग्नि ने उसका आदर सत्कार किया। जमदग्नि के यहाँ पर कामधेनु गाय हुआ करती थी उसी के गोरस के भंडार से जमदग्नि वैभवशाली तरीके से सबका सत्कार किया करते थे। जब सहस्त्रबाहु ने कामधेनु गाय देखी तो उसने बिना पूछे बल पूर्वक कामधेनु को अपने साथ अपने नगर ले गया।

जब परशुराम आश्रम लौटे तो उन्हें सब बात का पता चला।

गुस्से में आकर परशुराम ने राजा सहस्त्रबाहु को चुनौती दी और उसकी विशाल सेना का संहार कर दिया और सहस्त्रबाहु का सिर अपने फरसे से काट डाला। ऋषि जमदग्नि ने ये सब सुना तो उनको बहुत दुःख हुआ और उन्होंने परशुराम को उनके पापों के प्रायश्चित के लिए तीर्थयात्रा पर भेज दिया।

एक वर्ष तक परशुराम सभी तीर्थों का भ्रमण करते हुए अंत में आश्रम पहुंचे।

जब एक दिन परशुराम की माता रेणुका जल लेने गई तो वहां चित्ररथ के प्रति उनके मन में प्रेम जागा। वे जल लेकर अनमनी सी आश्रम लौटी। पत्नी की मानसिक स्थिति का अवलोकन कर जमदग्नि ने परशुराम को अपनी माता का वध करने को कहा। परशुराम ने पिता की आज्ञा मानकर अपनी माता का वध कर दिया। पुत्र के इस कर्म से प्रसन्न होकर जमदग्नि ने पूछा बोलो क्या वर दूँ। तब परशुराम ने कहा कि माता को फिर से जीवित कर दीजिये और ऐसा वर दीजिये कि उन्हें यह याद ना रहे कि उनका वध मैंने किया था।

जमदग्नि ने ऐसा ही किया।

लेकिन कहानी अभी भी बाकि थी, एक बार राजा सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने अवसर पाकर समाधी में बैठे जमदग्नि को मार डाला और उनका सिर काटकर ले गये।

परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा। जिसका बदला परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का नाश करके इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियविहीन कर दिया था।

सहस्त्रबाहु अर्जुन के दिवंगत होने के बाद उनके पांच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे।

जयध्वज के सौ पुत्र थे जिन्हें तालजंघ कहा जाता था, क्योंकि ये काफी समय तक ताल ठोंक कर अवंति क्षेत्र में जमे रहें। लेकिन परशुराम के क्रोध के कारण स्थिति अधिक विषम होती देखकर इन तालजंघों ने वितीहोत्र, भोज, अवंति, तुण्डीकेरे तथा शर्यात नामक मूल स्थान को छोड़ना शुरू कर दिया। इनमें से अनेक संघर्ष करते हुए मारे गए तो बहुत से डर के मारे विभिन्न जातियों एवं वर्गों में विभक्त होकर अपने आपको सुरक्षित करते गए। अंत में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर युद्ध करने से रोक दिया।

हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भड़ौच आदि क्षे‍त्र में रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।

इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भड़ौच से भार्गव सैन्य लेकर हैहयों की नर्मदा तट की बसी महिष्मती नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया। अपने इस प्रथम आक्रमण में उन्होंने राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।

इसके बाद उन्होंने देशभर में घूमकर अपने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया। इनमें 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशी राजाओं का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नहीं है।ऐसा कहा जा सकता है कि अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशी छुपकर बच गए होंगे।

Desclaimer: पौराणिक कथाये हिन्दू धर्म की अनंत गहराइयों के साथ ही अनेको विद्वानों के रिसर्चों और लेखो पे भी आधारित होती है .. अन्य लेखकों के अन्य मत भी हो सकते है।

No comments:

Post a Comment

श्रीकृष्णार्जुन संवाद (गीता) को किस-किस ने सुना?

महाभारत ‘भीष्मपर्व’ के अंतर्गत ‘श्रीमद्भगवतगीता उपपर्व’ है जो भीष्मपर्व के तेरहवें अध्याय से आरम्भ हो कर बयालीसवें अध्याय में समाप्त होता है...