Sunday, November 17, 2019

कौरवों के 100 पुत्रों में उम्र का कितना अंतर था, पहले पुत्र और 100वें पुत्र में कितना अंतर था?

कौरव १०१ थे और इनके जन्म की घटना एक बिचित्र स्थिति  मे हुई|

कुंती को जब पुत्र युधिष्ठिर का जन्म हो गया तो धृतराष्ट्र के पत्नी गांधारी को भी पुत्रवती होने की इच्छा हुई| पर दो साल गर्भ धारण के पश्चात भी उन्हें कोई पुत्र नहीं हुआ| इसके पूर्व गांधारी ने वेद व्यास जी की चरणवंदना की थी और पुत्रवती होने का बरदान प्रपात किया था|

गर्भ गांधारी को है पर बच्चे का जन्म दो साल का लम्बा समय बीतने के बाद भी जब किसी पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो गांधारी बड़ी दुखी हुई और उन्होंने क्रोधवश अपने ही पेट पर मुक्का प्रहार असाधारण ढंग से किया| ज्यों ही मुक्का का प्रहार पेट पर हुआ, गांधारी के गर्भ गिर गया जो की एक मांस का लोथरा था| वेद व्यास जी त्रिकाल दर्शी सब कुछ दूर से ही देख लिया और जान लिया| वो तुरंत वहां पहुंचे और गांधारी को डांटा| वेद व्यास जी ने डांटेते हुए गांधारी को कहा की तुमने बड़ी भारी अपराध किया है| मेरा बरदान कभी मिथ्या नहीं हो सकता|

इस प्रकार वेद व्यास जी के आज्ञा के अनुसार सौ कुंड बनाये गए और उसमे धृत भरबा दिए गए| वेद व्यास जी ने उस मांस के लोथरा यानि पिंड को उसमे रखकर अभिमंत्रित जल को छिड़का और जल के छींटे पड़ते ही वो मांस के पिंड के सौ टुकड़े बराबर मात्रा में हो गए| इस प्रकार वेद व्यास जी ने वो सौ टुकड़े मांस के पिंड को उन हे बराबर मात्रा में वो कुंड में रख दिए और गांधारी को दो वर्ष के बाद ही उस कुंड को खोलने को कहा|

इस प्रकार ठीक दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। ठीक उसी दिन दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती का पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। इस प्रकार फिर उन ९९ कुंड से और ९९ पुत्रो का जन्म हुआ और एक पुत्री दुशाला हुई| जब दुर्योधन का रेकना प्रारम्भ हुआ तो राजा ने ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछा| इस पर ज्योतिष ने धृतराष्ट्र को बताया, "राजन्! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। यानी यह पुत्र के कारण ही आपके कुल का सर्वनाश होगा| इसलिए, हे राजन ऐसे दुराचारी पुत्र काल के सामान है और इसे त्याग देना ही उचित है|

किन्तु पुत्रमोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। गान्धारी को जिस समय गर्भ पात असमय हुआ उस समय वो बड़ी कमजोर और कमजोर हो गयी थी| इस कारन उस समय धृतराष्ट्र की सेवा में एक दासी राखी गयी थी जो राजा धृतराष्ट्र का देखभाल करती थी| राजा ने उसके साथ सहबास किया और उससे दासी का युयुत्स नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथायोग्य कन्याओं से कर दिया गया। दुश्शला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ। इस प्रकार सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन है जो की स्वयं कलियुग ही था और इसके बाद सभी पुत्र एक ही समय में उत्पन्न हुए| न कोई बड़ा और न छोटा?

1. दुर्योधन, 2. दु:शासन, 3. दुस्सह, 4. दुश्शल, 5. जलसंध, 6. सम, 7. सह, 8. विंद, 9. अनुविंद, 10. दुद्र्धर्ष, 11. सुबाहु, 12. दुष्प्रधर्षण, 13. दुर्मुर्षण, 14. दुर्मुख, 15. दुष्कर्ण, 16. कर्ण, 17. विविंशति, 18. विकर्ण, 19. शल, 20. सत्व 21. सुलोचन, 22. चित्र, 23. उपचित्र, 24. चित्राक्ष, 25. चारुचित्र, 26. शरासन, 27. दुर्मुद, 28. दुर्विगाह, 29. विवित्सु, 30. विकटानन, 31. ऊर्णनाभ, 32. सुनाभ, 33. नंद, 34. उपनंद, 35. चित्रबाण, 36. चित्रवर्मा, 37. सुवर्मा, 38. दुर्विमोचन, 39. आयोबाहु, 40. महाबाहु, 41. चित्रांग, 42. चित्रकुंडल, 43. भीमवेग, 44. भीमबल, 45. बलाकी, 46. बलवद्र्धन, 47. उग्रायुध, 48. सुषेण, 49. कुण्डधार, 50. महोदर, 51. चित्रायुध, 52. निषंगी, 53. पाशी, 54. वृंदारक, 55. दृढ़वर्मा, 56. दृढ़क्षत्र, 57. सोमकीर्ति, 58. अनूदर, 59. दृढ़संध, 60. जरासंध 61. सत्यसंध, 62. सद:सुवाक, 63. उग्रश्रवा, 64. उग्रसेन, 65. सेनानी, 66. दुष्पराजय, 67. अपराजित, 68. कुण्डशायी, 69. विशालाक्ष, 70. दुराधर, 71. दृढ़हस्त, 72. सुहस्त, 73. बातवेग, 74. सुवर्चा, 75. आदित्यकेतु, 76. बह्वाशी 77. नागदत्त, 78. अग्रयायी, 79. कवची, 80. क्रथन, 81. कुण्डी, 82. उग्र, 83. भीमरथ, 84. वीरबाहु, 85. अलोलुप, 86. अभय, 87. रौद्रकर्मा, 88. दृढऱथाश्रय, 89. अनाधृष्य, 90. कुण्डभेदी, 91. विरावी, 92. प्रमथ, 93. प्रमाथी, 94. दीर्घरोमा, 95. दीर्घबाहु, 96. महाबाहु, 97. व्यूढोरस्क, 98. कनकध्वज, 99. कुण्डाशी, 100. विरजा ।

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