नोट - कृष्ण को मैं महाभारत का चरित्र भर नहीं मानता. वह उससे परे हैं. इसलिए मैने उनका उल्लेख नहीं किया.
महाभारत बहुत रोचक पुस्तक है. आप इसको जितनी बार पढ़ेंगे इसका एक नया दृष्टान्त देखेंगे.
शुरू में मुझे कर्ण सबसे अधिक प्रिय था. एकदम angry young man टाइप. लेकिन जब महाभारत को ठीक से समझा तो कर्ण अल्पज्ञानी, अहंकारी और असुरक्षा से भरा हुआ लगने लगा.
फिर मुझे दुर्योधन जमा. काफी हद तक अभी भी मुझे पसंद है दुर्योधन. दुर्योधन की असुरक्षा कर्ण की असुरक्षा से बहुत अलग है. वह यह अभिमान नहीं करता कि अवसर नहीं मिलने पर भी मैंने श्रेष्ठ विद्या सीखी, मेरे समान योद्धा कोई नहीं है आदि आदि. वह जानता है कि वह सर्वश्रेष्ठ नहीं है, फिर भी उसके अंदर एक आत्मविश्वास और दुस्साहस है जो कि बहुत ही प्रकृतिक और सहज है. उसके जो भी कपट हैं वह इसी सहज़ आत्मविश्वास के कारण हैं.
लेकिन कई बार महाभारत पढ़ने के बाद मुझे जो चरित्र सबसे सराहनीय लगा है वह है भीमसेन. भीमसेन बस लड़ैत भर नहीं है, जैसा उसको आमतौर पर मान लिया जाता है. वह सबसे ज्यादा ईमानदार और sorted इंसान है महाभारत का. उसके अंदर सच्चाई, सहज़ बुद्धि और साहस का गज़ब समन्वय है. भीम महाभारत में वही है जो भारतीय क्रिकेट टीम में वीरेंद्र सहवाग है. बिना लागलपेट के सच्ची बात बोलना. बिना परिणाम की चिंता किए नेचुरल गेम खेलना. द्यूतसभा में युधिष्ठिर को फटकारना हो, या दुर्योधन की जंघा तोड़ने की और दुशासन की छाती फाड़ने की प्रतिज्ञा, मेजबान के लिए गाड़ी लेकर असुर के पास जाने की बात हो, या विराट नगर में कीचक वध का जोखिम - इस आदमी को निर्णय लेने में 2 क्षण से ज्यादा समय नहीं लगता था. यह जल्दबाजी भीमसेन का अधैर्य नहीं है, उनकी सहज़ बुद्धि और न्यायप्रियता है. जहाँ युधिष्ठिर "क्या परिणाम होगा?" जैसे राजनीतिक प्रश्नों में उलझे रहते थे वहीं भीम यह स्पष्ट जानता था कि इस स्थिति में उसका धर्म क्या होना चाहिए और वह उसी का पालन करता था.
कम लोग जानते हैं कि द्रौपदी को भी सर्वाधिक प्रेम भीम से था भले ही अर्जुन ने स्वयंवर जीता हो. द्रौपदी भीम का सरल मानवीय स्वभाव जानती थी और इसीलिए वह संकट में सबसे पहले भीम को याद करती थी.
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