Thursday, November 28, 2019

क्या भगवान श्री कृष्ण ने छल कपट से महाभारत में पांडवों को जितवाया था?

महाभारत में श्रीकृष्ण नें कोई छल नहीं किया। भगवान् कृष्ण नें महाभारत के माध्यम से हमें यह संदेश दिया कि किसी भी अधर्मी को दण्ड मिलना ही चाहिए, चाहे जैसे मिले।

महाभारत के युद्ध में सामान्यत: माना जाता है कि भीष्म, द्रोण, कर्ण और दुर्योधन का वध अधर्मपूर्वक किया गया। लेकिन सब घटनाओं का स्पष्टीकरण दिया जा सकता है।

सबसे पहले भीष्म की बात करते हैं - भीष्म कुरुवंश के सबसे प्रबुद्ध और वीर माने जाने वाले व्यक्तियों में से एक थे। लेकिन क्या भीष्म नें अपने जीवन में कोई अपराध नहीं किया?

भीष्म नें अपने भाई विचित्रवीर्य का विवाह कराने के लिए काशी के राजा की तीन पुत्रियों को बलपूर्वक अगवा कर लिया था। उनमें से सबसे बड़ी पुत्री अंबा नें जब न्याय पाने के लिए परशुराम जी की शरण ली, तो भीष्म नें अपने अपराध के दंड से बचने के लिए अपने ही गुरु परशुराम से युद्ध किया।

पांडवों पर बचपन से ही अत्याचार होते रहे, उन्हें मारने की कोशिशें होती रहीं लेकिन भीष्म नें एक बार भी विरोध नहीं किया। वे कौरवों को सिर्फ प्रेमपूर्वक समझाते रहे।

भीष्म अत्यंत शक्तिशाली थे, वे चाहते तो जिस प्रकार उन्होंने काशी की राजकुमारियों के अपहरण के समय बल दिखाया था, उसी प्रकार बल पूर्वक दुर्योधन की साजिशों को भी रोक सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। यहाँ तक कि अति तब हो गई, जब वे अपनी वधू द्रौपदी के वस्त्र हरण को चुपचाप देखते रहे। उन्होंने पाण्डवों के वनगमन का भी विरोध नहीं किया और विराट नगर में हुए युद्ध में भी दुर्योधन का साथ दिया ।

अतः महाभारत युद्ध में उनका वध तो निश्चित ही था। फिर भी उनके वध में अधर्म नहीं हुआ। चलिए सोचते हैं - जब भीष्म के सामने शिखण्डी युद्ध के लिए आया, तो ऐसा नहीं था कि अर्जुन छिपे हुए थे। अर्जुन भीष्म के सामने ही थे, सिर्फ शिखण्डी सबसे आगे चल रहा था।

ऐसा भी नहीं था कि भीष्म नें शिखण्डी को देखकर अपने अस्त्र रख दिए थे। भीष्म लगातार सभी पर बाण छोड़ रहे थे, सिर्फ उन्होंने शिखण्डी पर वार नहीं किया। इससे अर्जुन को थोड़ी मदद मिली और भीष्म का वेग कुछ कम हो गया।

ऐसा भी नहीं था कि भीष्म उस समय अकेले थे। भीष्म की रक्षा में कौरव पक्ष के आठ महारथी भी वहीं युद्ध कर रहे थे। उनके नाम हैं द्रोण, कृतवर्मा, जयद्रथ, भूरिश्रवा, शल, शल्य, भगदत्त और दु:शासन। अर्जुन नें भीष्म पर इन सबको पछाड़कर वार किया था।

जब अर्जुन भीष्म के सामने ही थे और उनके बाणों का प्रहार भी झेल रहे थे, और भीष्म कई महारथियों से रक्षित भी थे, तो इसमें कैसा अधर्म?

इसके बाद आचार्य द्रोण की मृत्यु के बारे में कहें, तो द्रोणाचार्य का मरना भी निश्चित ही था। क्योंकि जो जो अपराध भीष्म के थे, वही वही द्रोण के भी थे। द्रोण नें भी किसी भी साजिश का विरोध नहीं किया था और न ही उसे रोकने की कोशिश की थी।

इसके अलावा, द्रोणाचार्य नें अभिमन्यु को धोखे से मारने में भरपूर साथ दिया था। युद्ध के समय उन्होंने पैदल सैनिकों पर ब्रह्मास्त्र चलाया था, जिसे बहुत गलत कार्य माना जाता था।

जिस दिन द्रोण का वध हुआ, उससे पूर्व लगातार दिन रात युद्ध हुआ था और द्रोणाचार्य बहुत थके हुए थे। उनका युद्ध धृष्टद्युम्न से चल रहा था। जब अश्वत्थामा के मरने की झूठी खबर दी गई, उस समय द्रोणाचार्य नें तुरंत अपने शस्त्रों का त्याग नहीं किया था, वे बिना रुके धृष्टद्युम्न से लड़ रहे थे। इसके बाद उन्हें दिव्य ऋषियों नें उनके पापों का स्मरण कराया, उसके बाद द्रोण नें हथियार रखे थे।

हाँलाकि अपने पुत्र की मृत्य की खबर सुनकर वे बहुत ज़्यादा द्रवित हो चुके थे।

साथ ही साथ जब धृष्टद्युम्न नें उनका सर काटा, उस समय कदाचित् द्रोणाचार्य योग विधि द्वारा पहले ही परम धाम जा चुके थे।

द्रोणवध पर्व, द्रोण पर्व, महाभारत

उसके बाद धृष्टद्युम्न नें उनका सर काट लिया।

इसके बाद कर्ण -

कर्ण तो दुर्योधन के सहायकों में से सबसे प्रमुख ही था। उसने वारणावत की साजिश, जुए की साजिश, द्रौपदी के चीर हरण, घोष यात्रा की साजिश, विराट नगर के युद्ध से लेकर अभिमन्यु के वध तक हर गलत कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था।

लोग कहते हैं कि घटोत्कच के ऊपर कर्ण की शक्ति चलवाना गलत था। यह गलत कैसे था? भीम के पुत्र नें कर्ण को इतना ज़्यादा परेशान और भयभीत कर दिया था कि कर्ण को विवश होकर वह शक्ति चलानी पड़ी। इसमें कोई अधर्म नहीं था।

जब कर्ण नें अर्जुन पर सर्पबाण चलाया, तो वह कोई साधारण बाण नहीं था। उसमें अश्वसेन नाम का जीवित सर्प बैठा हुआ था जिसके बारे में अर्जुन को पता नहीं था। और सारथी का तो कर्तव्य ही होता है कि वो अपने रथी के प्राण बचाए। ऐसे में श्रीकृष्ण नें रथ को दबा दिया तो इसमें कौन सा अधर्म? बाद में जब अर्जुन को उस बाण की सच्चाई पता चली, तो उन्होंने बड़ी आसानी से उस सर्प का वध कर दिया था।

युद्ध के सत्रहवें दिन, जब कर्ण को मारा गया, तो पहले के प्राप्त श्राप के कारण उसके रथ का पहिया जमीन में धंस गया था। इसमें कर्ण की ही गलती थी। महाभारत युद्ध में अनेकों बार वर्णन है कि जब रथ नष्ट हो जाता, था, तो योद्धा जमीन पर से युद्ध करते थे।

जब भीम का रथ नष्ट हुआ, तो उन्होंने युद्ध किया था। जब अभिमन्यु का रथ नष्ट हुआ, तो उसने जमीन पर खड़े रह कर ही सभी के छक्के छुड़ा दिए थे। यहाँ तक कि रथ नष्ट हो जाने पर भी उसने ऐसा युद्ध किया कि कौरवों को उसे मारने के लिए धोखे का सहारा लेना पड़ा।

लेकिन कर्ण ने क्या किया… जब रथ नष्टप्राय हो गया तो वो धर्म की दुहाई देने लगा। बीच युद्ध में ऐसा कौन करता है?? यहां तक कि कर्ण के हाथ में धनुष था और उसने अर्जुन से युद्ध करने की कोशिश भी की थी। कर्ण को भार्गवास्त्र के अलावा अन्य सभी अस्त्र भी याद थे। महाभारत के कर्ण पर्व में साफ लिखा है कि कर्ण नें अर्जुन पर वरुणास्त्र चलाया था।

यहाँ तक कि अर्जुन नें कर्ण को मारने से पहले उसे चेतावनी देते हुए उसके ध्वज को काटा था।

शायद श्रीकृष्ण नें कर्ण को मारने की जल्दी इसलिए की, जिससे कि कहीं वो अर्जुन के भाई होने का रहस्य न खोल दे।

कर्ण की सबसे ज़्यादा तारीफ शान्ति पर्व में युधिष्ठिर नें की है। लेकिन पूरी महाभारत पढ़ने पर हमें साफ पता चलता है कि युधिष्ठिर बहुत भावुक व्यक्ति थे। ऐसे में जब उन्हें पता चला कि कर्ण उनका भाई था, तो उन्होंने भावना में बहकर उसकी तारीफ की हो, ऐसा सम्भव प्रतीत होता है।

दुर्योधन के वध के सन्दर्भ में कहा जाए, तो दुर्योधन इतना बड़ा पापी था, कि उसे भगवान् कृष्ण चाहे जैसे दंड देते, वो ठीक ही था।

गदायुद्ध के समय उसने भीम को पछाड़ दिया था ये बात ठीक है। लेकिन महाभारत के सभा पर्व में लिखा है कि जब द्रौपदी का चीर हरण हुआ था, तो उस समय दुर्योधन नें द्रौपदी को अपमानित करने के लिए उन्हें अपनी जांघ दिखाई थी। इसके बाद भीम नें प्रतिज्ञा की थी कि वे दुर्योधन की जांघों को तोड़ डालेंगे। ऐसे में धर्म हो या अधर्म, भीम को दुर्योधन की जांघें तो तोड़नी ही थी।

ऐसा नहीं था कि श्रीकृष्ण या युधिष्ठिर नें युद्ध रोकने की कोशिश नहीं की, भगवान् खुद शांति का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए थे, लेकिन उन लोगों नें उल्टा उन्हें ही कैद करने की कोशिश की।

यदि दुर्योधन युधिष्ठिर को उनके सम्पूर्ण राज्य के बजाय सिर्फ पांच गांव ही दे देता, तो युद्ध न होता। लेकिन वो अपने लालच में इतना अंधा था कि कुछ समझ ही न सका।

अतः भगवान् कृष्ण पूर्णत: निर्दोष और धर्म पूर्ण थे। और उन्होंने इसके माध्यम से यह संदेश भी दिया कि सभी को उनके कर्मों का फल अवश्य मिलेगा, चाहे जैसे मिले।

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