कहने को महाभारत हमारी संस्कृति का भाग है और हम सब इसकी कथा को भली प्रकार से जानते हैं, परंतु इस महाकाव्य से इतनी दंतकथायें जुड़ी हैं, और इसमें इतना बदलाव किया गया है की हम जिसे बचपन से सत्य मानते आए थे, कई बार वह केवल मिथ्या होती है।
- द्रौपदी अपने इस कथन के लिए प्रसिद्ध है कि वो दुर्योधन के पानी में गिर जाने पर हँसी थी और उसने उसे ‘अंधे का पुत्र अंधा’ कहा था। सत्य यह है कि यह वाक्य पूरी महाभारत में कहीं भी, किसी ने भी नहीं कहा। जब दुर्योधन गिरा तो भीम और उसके अनुज दुर्योधन पर हँसे थे, किन्तु द्रौपदी वहाँ थी ही नहीं। और यह वाक्य किसी ने नहीं कहा। दुर्योधन ने जब इस प्रकरण की शिकायत धृतराष्ट्र से की तो उसने द्रौपदी, उसकी दासियों और कृष्ण के उस पर हँसने की बात कही, किन्तु उस समय वहाँ पर ना द्रौपदी थी ना कृष्ण। और ये झूठ तो दुर्योधन ने भी नहीं कहा कि उसे अंधे का पुत्र कहा गया।
- यह भी बहुत प्रसिद्ध है कि द्रौपदी ने कर्ण को अपने स्वयमवर में भाग लेने से रोक दिया था। कई लोग ये भी मानते है कि उसने कर्ण को नीच जाति का कहकर अपमान किया था। किन्तु सत्य यह है की ना ही कर्ण नीच जाति का था, ना ही द्रौपदी ने उसे रोका और ना उसका अपमान किया। यह प्रकरण कथा को और रोचक बनाने के लिए बाद में जोड़ा गया था। कर्ण सूत था, शूद्र नहीं। सूत एक मिश्रित जाति है जो एक ब्राह्मण स्त्री के एक क्षत्रिय पुरुष से विवाह करने से बनती है। महाभारत की क़रीब १२००+ प्राचीन लिपियाँ हैं, जिन्मे से केवल ४-५ में कहा गया है कि द्रौपदी ने कर्ण को रोका। अधिकतर मेंकहा गया है कि वो बाक़ी योद्धाओं की तरह स्वयमवर की परीक्षा में हार गया था।
- अधिकतर लोग समझते है कि गुरु द्रोण ने कर्ण को उसकी जाति के कारण उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया था। किंतु सत्य यह है कि कर्ण भी गुरु द्रोण का शिष्य था। वह भी राजकुमारों के साथ शिक्षा ग्रहण कर रहा था क्योंकि उसके पिता अधिरथ धृतराष्ट्र के मित्र थे। द्रोण ने उसे केवल ब्रहमास्त्र देने से इंकार किया था, क्योंकि उसने कहा कि उसे वह अस्त्र अर्जुन को परास्त करने के लिए चाहिए। द्रोण को उसकी मंशा और तेवर ठीक नहीं लगे और उन्होंने उसे मना कर दिया। उसके बाद कर्ण परशुराम के पास गया और उनसे असत्य कहा की वो एक भार्गव ब्राह्मण है।
- अधिकतर लोग द्रौपदी को युद्ध का कारण मानते हैं। परंतु सत्य यह है की युद्ध के ज़िम्मेवार दुर्योधन, युधिष्ठिर और कर्ण थे। दुर्योधन को किसी भी हाल में राज्य चाहिए था। युधिष्ठिर स्वयं अपना राज्य द्यूत में हार गए, जिसको पुनः प्राप्त करने के लिए उन्हें लड़ना पड़ा। कर्ण को किसी भी हाल में अर्जुन से युद्ध करके स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करना था, इसलिए वह दुर्योधन को सदा युद्ध के लिए उकसाता रहा और उसने कभी शांति स्थापित नहीं होने दी। द्रौपदी से बुरा व्यवहार केवल पांडवो को लज्जित करने के लिए और उन्हें तोड़ने के लिए किया गया था। वह युद्ध का कारण नही थी।
- कर्ण अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध है। कहते है कि इंद्र ने छल से उससे उसका कवच और कुंडल माँग लिए थे। किन्तु सत्य यह है की सूर्यदेव को इंद्र की योजना पता थी और उन्होंने कर्ण को उसके स्वप्न में बता दिया था। उन्होंने कर्ण से कहा की वो इंकार कर दे। कर्ण ने ऐसा करने से मना किया तो उन्होंने कर्ण को इंद्र से उनकी शक्ति लेने को कहा। जब इंद्र आए तो कर्ण ने उन्हें पहचान लिया, और उनसे अपने कवच-कुंडल के बदले में दो वरदान माँगे। प्रथम उनका सबसे शक्तिशालीअस्त्र और दूसरा की कवच काटने से उसके शरीर पर कोई घाव ना बने। तब इंद्र ने कहा की उनका सबसे शक्तिशाली अस्त्र, वज्र, वो अर्जुन को दे चुके हैं। उन्होंने कर्ण को अपना दूसरा सबसे शक्तिशाली अस्त्र, वसवी शक्ति, देने का वचन दिया, और यह भी कहा की कर्ण का शरीर कवच कटने के बाद भी पूर्वव्रत रहेगा। उसके बाद कर्ण ने उन्हें अपने कवच-कुंडल दे दिए। अतः यह दान नहीं था। क्योंकि दान के बदले कुछ ना माँगा जाता है ना लिया जाता है।
- अर्जुन श्वेतवाहन व कपिध्वज के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। क्योंकि विश्वकर्मा द्वारा निर्मित उनके रथ में श्वेत गंधर्व अश्व लगे थे, जो ना साधारण अश्वों की भाँति जल्दी थकते थे और ना युद्ध में किसी के भी द्वारा मारे गए, जो बाक़ी योद्धाओं के साथ कई बार हुआ।
No comments:
Post a Comment