1. पांच सोने के तीर:
जब कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और उन्हें कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं. भीष्म पितामह को काफी गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत पांच सोने के तीर लिए और कुछ मंत्र पढ़े. मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल इन पांच तीरों से वे पांडवों को मार देंगे. मगर दुर्योधन को भीष्म पितामह के ऊपर विश्वास नहीं हुआ और उसने तीर ले लिए और कहा कि वह कल सुबह इन तीरों को वापस करेगा. इन तीरों के पीछे की कहानी भी बहुत मजेदार है. भगवान कृष्ण को जब तीरों के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन को बुलाया और कहा कि तुम दुर्योधन के पास जाओ और पांचो तीर मांग लो. दुर्योधन की जान तुमने एक बार गंधर्व से बचायी थी. इसके बदले उसने कहा था कि कोई एक चीज जान बचाने के लिए मांग लो. समय आ गया है कि अभी तुम उन पांच सोने के तीर मांग लो. अर्जुन दुर्योधन के पास गया और उसने तीर मांगे. क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन ने अपने वचन को पूरा किया और तीर अर्जुन को दे दिए.
2.महाभारत के कारण हिंदुस्तान का अहित नहीं हुआ :
महाभारत की छाया में हिंदुस्तान में जो शिक्षक पैदा हुए , वे सब युद्ध विरोधी थे । और उन्होंने महाभारत का शोषण किया । और कहा कि ऐसा युद्ध और ऐसी हिंसा । नहीं अब न युद्ध करना , न ही अब हिंसा करनी हैं । अब लड़ना नहीं हैं । महाभारत के पीछे कृष्ण की क्षमता के व्यक्तियों की श्रृंखला नहीं हम पैदा कर पाए । अन्यथा महाभारत में जिस ऊंचाई को हमारे देश की चेतना की लहर ने छुआ था , हम हर बार उससे जादा ऊंचाई की लहर को छु सकते थे । और शायद हम पृथ्वी पर सबसे ज्यादा संपन्न और ज्यादा विकसित समाज होते ।
यह भी सोचने जैसा है कि महाभारत जैसा युद्ध विपन्न समाजों में घटित नहीं होता । युद्ध के लिए भी संपन्न होना जरूरी हैं । और संपन्नता के लिए भी युद्ध का घटना जरूरी हैं । असल में वह चुनौती के क्षण हैं । कृष्ण ने जिस युद्ध में हमें उतारा था , वह युद्ध में हम सतत उतरे होते …. क्योंकि इसे हम सोचें , आज करीब – करीब पश्चिम उस जगह हैं जहाँ महाभारत के दिनों हम पहुँच गए थे । आज जितने अस्त्रों – शस्त्रों की बात हैं , करीब – करीब पश्चिम उस जगह हैं जहां महाभारत के दिनों हम पहुँच गए थे । आज जितने अस्त्रों – शस्त्रों की बात हैं , करीब – करीब वे सभी अस्त्र – शस्त्र किसी न किसी रूप में महाभारत में प्रयोग किए गए । बड़ा संपन्न , बड़ा प्रतिभाशाली और बड़ा उन्नत शिखर था । उस युद्ध में कुछ हानि नहीं हो गईं । उस युद्ध के बाद यह निराशा का क्षण हमें पकड़ा । उस निराशा के क्षण का दुरूपयोग हुआ । उस निराशा के क्षण ने पश्चिम में भी पकड़ा हैं कुछ को । पश्चिम भी भयभीत हो गया हैं । और पश्चिम का अगर पतन होगा , तो वह पश्चिम मे जो शांतिवादी हैं उसकी वजह से होगा । अगर पश्चिम नें शांतिवादी की बात मान ली , तो पश्चिम पतित हो जाएगा । वह वहीं पहुँच जाएगा , जहां महाभारत के बाद हम पहुंचे ।
॥ कृष्ण मेरी दृष्टि से -ओशो ॥
3. द्रोणाचार्य को भारत का पहले टेस्ट ट्यूब बेबी माना जा सकता है.
यह कहानी भी काफी रोचक है. द्रोणाचार्य के पिता महर्षि भारद्वाज थे और उनकी माता एक अप्सरा थीं. दरअसल, एक शाम भारद्वाज शाम में गंगा नहाने गए तभी उन्हें वहां एक अप्सरा नहाती हुई दिखाई दी. उसकी सुंदरता को देख ऋषि मंत्र मुग्ध हो गए और उनके शरीर से शुक्राणु निकला जिसे ऋषि ने एक मिट्टी के बर्तन में जमा करके अंधेरे में रख दिया. इसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ.
4. जब पांडवों के पिता पांडु मरने के करीब थे तो उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि बुद्धिमान बनने और ज्ञान हासिल करने के लिए वे उनका मस्तिष्क खा जाएं. केवल सहदेव ने उनकी इच्छा पूरी की और उनके मस्तिष्क को खा लिया. पहली बार खाने पर उसे दुनिया में हो चुकी चीजों के बारे में जानकारी मिली. दूसरी बार खाने पर उसने वर्तमान में घट रही चीजों के बारे में जाना और तीसरी बार खाने पर उसे भविष्य में क्या होनेवाला है, इसकी जानकारी मिली.
5. अर्जुन के बेटे इरावन ने अपने पिता की जीत के लिए खुद की बलि दी थी. बलि देने से पहले उसकी अंतमि इच्छा थी कि वह मरने से पहले शादी कर ले. मगर इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी क्योंकि शादी के तुरंत बाद उसके पति को मरना था. इस स्थिति में भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए रोए भी.
6. सहदेव, जो अपने पिता का मस्तिष्क खाकर बुद्धिमान बना था. उसमें भविष्य देखने की क्षमता थी इसलिए दुर्योधन उसके पास गया और युद्ध शुरू करने से पहले उससे सही मुहूर्त के बारे में पूछा. सहदेव यह जानता था कि दुर्योधन उसका सबसे बड़ा शत्रु है फिर भी उसने युद्ध शुरू करने का सही समय बताया.
7. महाभारत के युद्ध में उडुपी के राजा ने निरपेक्ष रहने का फैसला किया था. उडुपी का राजा न तो पांडव की तरफ से थे और न ही कौरव की तरफ से. उडुपी के राजा ने कृष्ण से कहा था कि कौरवों और पांडवों की इतनी बड़ी सेना को भोजन की जरूरत होगी और हम दोनों तरफ की सेनाओं को भोजन बनाकर खिलाएंगें. 18 दिन तक चलने वाले इस युद्ध में कभी भी खाना कम नहीं पड़ा. सेना ने जब राजा से इस बारे में पूछा तो उन्होंने इसका श्रेय कृष्ण को दिया. राजा ने कहा कि जब कृष्ण भोजन करते हैं तो उनके आहार से उन्हें पता चल जाता है कि कल कितने लोग मरने वाले हैं और खाना इसी हिसाब से बनाया जाता है.
8. जब दुर्योधन कुरूक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस से ले रहा था,
उस समय उसने अपनी तीन उंगलियां उठा रखी थी. भगवान कृष्ण उसके पास गए और समझ गए कि दुर्योधन कहना चाहता है कि अगर वह तीन गलतियां युद्ध में ना करता तो युद्ध जीत लेता. मगर कृष्ण ने दुर्योधन को कहा कि अगर तुम कुछ भी कर लेते तब भी हार जाते. ऐसा सुनने के बाद दुर्योधन ने अपनी उंगली नीचे कर ली.
9. कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था. कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही. वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए. कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें. ब्राह्मण ने सोना मांगा. कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं. ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं. कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए. ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता. कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया. इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया.
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