Thursday, November 21, 2019

हिंदी की उत्पत्ति कैसे हुई, जब संस्कृत मूल भाषा है तो हिंदी की जरुरत क्यों महसूस हुई ?

हिन्दी की उत्पत्ति किसी निश्चित योजना के तहत नहीं हुई,न ही इसकी जरूरत उस समय में किसी को महसूस हुई होगी। हिन्दी संस्कृत से उत्पन्न एक भाषा है लेकिन ऐसा नहीं है कि लोंगो ने संस्कृत को छोड़कर एकदम से हिन्दी बोलना शुरू कर दिया हो। संस्कृत(वैदिक) भाषा को विश्व की प्राचीनतम् भाषा माना जाता है, वेदों की रचना इसी भाषा में हुई, किन्तु इसका व्याकरण सुनिश्चत नहीं था किन्तु यह एक सरल एवं तत्कालीन समय की एक व्यावहारिक भाषा रही होगी। पांचवीं शताब्दी में गांधार(वर्तमान में अफगानिस्तान का कंधार) में जन्में महार्षि पाणिनी ने ‘अष्ठाध्यायी’ नामक ग्रन्थ को रचकर संस्कृत के व्याकरण को सुनिश्चत व वैज्ञानिक कर दिया जिससे ये भाषा थोड़ी क्लिष्ट तो हुई किन्तु इसके समान सटीक व्याकरण अभी तक किसी भाषा का नहीं हुआ। इस प्रकार वैदिक संस्कृत परिवर्तित होकर लौकिक संस्कृत कहलायी। आज हम जिस भाषा को संस्कृत नाम से जानते हैं वह लौकिक संस्कृत ही है।

लोगों ने बहुत लम्बे समय तक पाणिनी के क्लिष्ट व्याकरण नियमों का पालन नहीं किया और ये भाषा पालि के रूप मे जानी गयी। पालि और संस्कृत मे अधिक अन्तर नहीं हैं यह संस्कृत से थोड़ी सरल और पाणिनी के व्याकरण नियमों का न मानने के कारण थोड़ी बिगडी हुई संस्कृत कही जा सकती है। इसी काल में भारतभूमि पर जैन और बौद्ध धर्म का उदय हुआ और इसी पालि भाषा में इनके धर्म ग्रन्थों की रचनाएं हुई। समय के साथ पालि का रूप भी स्थिर नहीं रहा और 1ईसवीं के समय तक जो भाषा का स्वरुप बना वह ‘प्राकृत’ भाषा थी 1ईसवीं से 500ईसवीं तक प्राकृत ही लेखन की प्रमुख भाषा रही। समय के साथ बहुत सारे कारणों से भाषा में परिवर्तन हुए संस्कृत की उत्तराधिकारी भाषाओं के मूल स्वरुप में 500ईसवी तक हुए परिवर्तन के कारण इसका स्वरूप पूरी तरह से बिगड़ गया, तब इस भाषा को ‘अपभ्रंश’ नाम से जाना गया अपभ्रंश शब्द का अर्थ है बिगड़ा हुआ। भाषा का वह स्वरुप बहुत बिगड़ा हुआ था। अपभ्रंश का स्वरुप विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न था, जिन्हें मागधी अपभ्रंश, अर्द्धमागधी अपभ्रंश, पैशाची अपभ्रंश, शौरसैनी अपभ्रंश, ब्राचड़ अपभ्रंश, महाराष्ट्री अपभ्रंश व खस अपभ्रंश आदि नामों से जाना गया है। 1000ईसवी से शौरसैनी अपभ्रंश के रुप मे कुछ सामान्य परिवर्तन हुए जिन्हें पुरानी हिन्दी माना जाता है। 1000ईसवी में शौरसैनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा(हिन्दी), गुजराती, राजस्थानी का उदय हुआ। वहीं मागधी अपभ्रंश से बांग्ला, उड़िया, असमिया। अर्द्धमागधी अपभ्रंश से भोजपुरी,मैथिली, मगही। महाराष्ट्री अपभ्रंश से मराठी। ब्राचड़ अपभ्रंश से सिन्धी। खस अपभ्रंश से पहाड़ी,नेपाली व पैशाची अपभ्रंश से लंहदा व पंजाबी भाषाओं का विकास हुआ।

शौरसैनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा(हिन्दी) का विकास हुआ जो एक समय तक साहित्य की प्रमुख भाषा रही। 1850 ईसवी का समय भाषा के लिए और परिवर्तन लेकर आया ब्रजभाषा(हिन्दी) यद्यपि साहित्यिक भाषा के रुप सिद्ध हो चुकी थी किन्तु इसका व्याकरण बहुत ही लचीला था। अब गद्य साहित्य का उदय हुआ इसी के साथ ब्रजभाषा का स्थान खड़ीबोली हिन्दी ने ले लिया। ये खड़ीबोली हिन्दी ही आज हिन्दी का मानक स्वरुप है।

हम संस्कृत से हिन्दी तक के भाषा क्रम को इस प्रकार से समझ सकते हैं।-

वैदिक संस्कृत >लौकिक संस्कृत>पालि>प्राकृत>अपभ्रंश>हिन्दी एवं अन्य हिन्दार्य भाषाएं।

No comments:

Post a Comment

श्रीकृष्णार्जुन संवाद (गीता) को किस-किस ने सुना?

महाभारत ‘भीष्मपर्व’ के अंतर्गत ‘श्रीमद्भगवतगीता उपपर्व’ है जो भीष्मपर्व के तेरहवें अध्याय से आरम्भ हो कर बयालीसवें अध्याय में समाप्त होता है...