जब अश्वस्थामा ने महाभारत युद्ध के समय रात्रि में अपने पिता की हत्या का बदला लेनें के लिए पांडवों के शिविर में घुसा तो सबसे पहले पाँचों पांडवों के पुत्रों को सोतें हुए देखा था फिर वह उन्हें पांडवों को समझ कर उनके पुत्रों को मार डाला फिर जब पता चला कि पांडव नहीं मरे तो उन्हें मारने के लिए वह ब्रहास्त्र का प्रयोग किया तब भगवान श्री कृष्ण सामने खड़े थे ,जब ब्राहास्त्र से सारे वतावरण का संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ तो कुपित होकर श्री कृष्ण ,व्यासजी ,नारदजी ,और धर्मराज युधिष्ठिर जी इन पाँचों लोगों ने उसे समर्पण करनें को कहा फिर उसके माथे पर लगा जो जन्मजात मणि थी उससे उस मणि की माँग की जिससे अश्वस्थामा उस मणि को निकाल कर श्री कृष्ण के हाथ में दे दिया तब उसे हारा हुआ जानकर श्री कृष्ण वेदव्यस जी नारदजी इन तीनों लोगों ने मिलकर उसे श्रापित कर दिया और कहा जहाँ जहाँ ऐसा तुम्हारें इष्टदेव महादेव जी का मंदिर होगा जिसमें साधारण मनुष्य नहीं जा सकेंगे तुम उसी की पूजा करोगे वह भी एक रात्रि में इसके लिए तुम्हारे पास मन के समान तेज गति से जाने की शक्ति सिर्फ तुम्हारे पास होगी , बच्चों की हत्या करने के कारण तुम्हारे जैसे पापी का जो चेहरा देखेगा वह भी उसी पाप का भागीदार होगा इसीलिए अश्वस्थामा किसी को अपना चेहरा नहीं दिखाते हैं ।
और फिर इस पाप के निवारण हेतु भगवान श्री कृष्ण ने कहा जब मैं कल्की अवतार में कलयुग के अंत समय में जब तुम्हें दर्शन दूँगा तो तुम श्राप से मुक्त होकर तुम अपने सम्मानित स्थान पर जाओगे इसीलिए एक श्लोक में इसका वर्णन है अश्वस्थामा :बलि :व्यासों : हनुमानश्च : विभीषण : कृप :परसुरामश्च : सप्तआर्चय चिरंजिवीन: आज भी ये सातों लोग इस कलयुग में साक्ष त मौजूद हैं पर ये लोग किसी के सामने नहीं आते जो इन्हें जबरदस्ती देखने की कोशिश करता है वह पागल हो जाता है या अपना संतुलन खो देता है , इसीलिए ये सातों लोग बाबा धाम , काशीविश्वनाथ मंदिर ,सोमनाथ मंदिर ,केदारनाथ मंदिर ,यहाँ तक की कैलाशमानसरोवर अमरनाथजी जैसे जगहों पर नहीं जाते जहाँ पर साधारण मनुष्य पूजापाठ कर सकता है , ये लोग वहाँ पर शिवलिंग की पूजा करने जाते हैं जहाँ पर साधारण मनुष्य नहीं पहूँच पाता ,भारत में ऐसी बहुत जगह है जहाँ पर सिद्ध शिवलिंग हैं वहाँ पर हम इंन्सान पूजा करने नहीं जा सकते वहाँ सिर्फ यही सातों लोग पूजा अर्चना करते हैं सुबह होने से पहले वह स्थान बदल देतें हैं।
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