महाभारत एक धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथ है, जिसकी रचना धर्म के सन्दर्भ को समझाने तथा पुर्नस्थापना के उद्देश्य हेतु की गई थी। इस ग्रंथ में अनेकों पात्र स्थित है जिन्होंने अपने बहुत-से अधर्मी कृत्यों से कुरूक्षेत्र के युद्ध को अवश्यंभावी बनाया लेकिन महाभारत का कोई भी पात्र मर्यादापुरूषोतम नहीं था। लगभग सभी बुरे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में भी कुछ अच्छाईयां थी और लगभग सभी अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में भी कुछ बुराईयां थी । महाभारत के युद्ध के लिए हम सभी दुर्योधन को जिम्मेदार मनाते हैं। दुर्योधन अधार्मिकता तथा अनैतिकता से भरा था इससे कोई इंकार नहीं कर सकता और उसने कई अधार्मिक कार्यों को भी किया लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि दुर्योधन भी कर्तव्यनिष्ठ और धार्मिक योद्धा होने का परिचय दे सकता है —
पांच सुनहरे बाणों का रहस्य - महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार हों रही थी । यह बात दुर्योधन को बर्दाश्त नहीं हो रही थी, उसने एक रात भीष्म पितामह पर यह आरोप लगाया कि पांडवों के साथ ज्यादा लगाव होने की वजह से आप पूरी शक्ति के साथ पांडवों से युद्ध नहीं कर रहे हैं। इस आरोप से भीष्म पितामह क्रोधित हो गए और उन्होंने पांच ऐसे सुनहरे बाण निकाले जिनके ऊपर पांडव पुत्रों की मौत लिखी थी। उन्होंने दुर्योधन को बताया कि इन पांच बाणों से ही पांडव पुत्रों का वध होगा। दुर्योधन को भीष्म पितामह की बातों पर यकीन नहीं हुआ, इसलिए उसने पांचों तीरों को अपने कब्जे में ले लिया और कहा कि यह सुबह तक मेरे पास ही रहेंगे ।
पांडव पुत्रों का वध करने वाले इन पांच बाणों के बारे में भगवान श्रीकृष्ण भी जानते थे। इसलिए उन्होंने उसी रात अर्जुन को उस वरदान का स्मरण कराया जब पांडव पुत्र जंगल में निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे थे। दरअसल महाभारत युद्ध से बहुत पहले 12 साल के वनवास के दौरान पांडव पुत्र एक कुण्ड के पास रहते थे। उस कुंड के सामने दुर्योधन भी शिविर लगाकर रह रहा था, ताकि पांडव पुत्रों पर नजर रख सके। एक बार जब दुर्योधन उसी कुंड में नहाने गया उसी दौरान गंधर्व राजकुमार भी उसी कुंड में नहाने के लिए आए। यह चीज दुर्योधन को पसंद नहीं आई उन्होंने गंधर्व के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में दुर्योधन को बंदी बना लिया गया ।
धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर अर्जुन ने ही गंधर्व से दुर्योधन को मुक्त कराया था। अर्जुन के हाथों मुक्त होने की वजह से अहंकारी दुर्योधन खुद में लज्जित महसूस कर रहा था लेकिन एक क्षत्रिय होने के नाते उसने अर्जुन को वरदान मांगने को कहा। तब अर्जुन ने उसे कहा कि सही समय आने पर वह अपना वरदान जरूर मांगेगा।
भगवान श्रीकृष्ण इसी वरदान के बारे में अर्जुन को स्मरण करा रहे थे। उन्होंने अर्जुन से कहा कि जाओ पार्थ, दुर्योधन से वह पांच सुनहरे बाण लेकर आओ जिसे भीष्म पितामह ने तुम पांच भाइयों के वध के लिए घोषित कर रखा है।
दुर्योधन के पास पहुंचने के बाद जब अर्जुन ने उन पांच सुनहरे बाणों की मांग की तो वह हैरान हो गया। तब अर्जुन ने उसे पुराने वरदान के बारे में याद दिलाया। आखिरकार दुर्योधन को न चाहते हुए भी अपने वरदान को पूरा करना पड़ा और उन पांचों बाणों को अर्जुन को समर्पित करना पड़ा जिससे पांचों पांडवों की मृत्यु निश्चित हो जाती । दुर्योधन चाहता तो यह बाण अर्जुन को नहीं देता और अपने दिए हुए वरदान की अवहेलना कर देता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने एक महापुरुष की भांति अर्जुन को बाण देकर अपने वचन की प्रतिष्ठा रखी ।
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