१- कृष्ण ने उपदेश दिया.. ठीक है
२- अर्जुन ने सुना …. सही है। ……. लेकिन
३- किसी तीसरे ने उसको सुना नहीं… कहना ग़लत है।
तीसरे ने सिर्फ सुना ही नहीं बल्कि सारी घटनाएं देखीं भी थीं।
श्रीमद् भगवद्गीता का पहला श्लोक ही यह बता देता है कि श्री कृष्ण और अर्जुन के अतिरिक्त कोई तीसरा भी है जो न सिर्फ सुन रहा है बल्कि देख भी रहा है और चौथे व्यक्ति को सारी घटनाओं की आंखों देखी बता भी रहा है।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:।
मामका: पाण्डवश्चैव किम् कुर्वत संजय।।
श्रीमद् भगवत् गीता के इस पहले श्लोक से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री कृष्ण और अर्जुन के अलावा कोई चौथा व्यक्ति (धृतराष्ट्र) किसी तीसरे व्यक्ति (संजय) से यह पूछ रहा है कि हे संजय कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे पुत्रों और पाण्डवों ने क्या किया।
इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि वक्ता और श्रोता के अतिरिक्त दो ऐसे व्यक्ति भी थे जो सब कुछ देख और सुन - समझ रहे थे।
श्रीमद् भगवद्गीता लिखी किसने अर्थात् ऋषि वेदव्यास को कैसे पता चला कि श्री गीता कही भी गई है?
सम्पूर्ण कथा बताने के लिए और सारी घटनाओं का तारतम्य बैठाने के लिए मुझे पूरी महाभारत की कथा ही कहनी पड़ेगी। यहां इतना ही बताना है कि श्री वेदव्यास जी स्वयं ही इस घटनाक्रम के साक्षी भी रहे हैं। नेपाल में तान्हू नामक स्थान पर वह गुफा आज भी मौजूद है जहां बैठकर ऋषि व्यास ने महाभारत की कथा कही थी और श्री गणेश जी ने उसे लिपिबद्ध किया था। श्री वेदव्यास चिरंजीवी भी हैं और आज भी उनका अस्तित्व है।
देवव्रत भीष्म के सौतेले भाई श्री वेदव्यास जी ने अपनी गुफा में बैठकर महाभारत की सारी घटनाएं देखीं और उसके साक्षी बने। उनमें श्री विष्णु का अंश विद्यमान था।
जब अर्जुन को भगवान् श्री कृष्ण गीता ज्ञान दे रहे थे, तो उस कुरुक्षेत्र का लाइव टेलीकास्ट दूरदर्शन के तरह संजय यही दृश्य धृतराष्ट्र यानी दुर्योधन के पिता कर हस्तिनापुर के सम्राट को आँखों देखा हाल बता रहा था. संजय इसलिए यह दृश्य देखर बता रहा था, क्योंकि संजय को वेद व्यास जी ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर दिया था, ताकि वो सब कुछ हस्तिनापुर में बैठे कुरुक्षेत्र का दृश्य देख सके? सच पूछा जाए तो दूरदर्शन का निर्माण उसी गीता के आधार पर हुआ हैं.
वेद व्यास कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, शायद आप जानते होंगे की वो भगवान् विष्णु के ही एक रूप माने जाते हैं और उन्हें कृष्णद्वायापन भी कहा जाता हैं. उन्हें बिशेष रूप से द्वापर युग में भेजा गया था ताकि वो इन सारे ग्रंथो और वेदो को लिखकर एक करें और यथा संभव सही स्थान दें./ इसलिए वो आये थे और आज भी वो हनुमान जी के तरह जीवित इसी पृथ्वी पर स्थित हैं।
वेद व्यास जी ने महाभारत युद्द आरम्भ होने के पहले यह दिव्य दृष्टि धीरतराष्ट्र को देने के लिए आए, पर उन्होंने मना कर दिया तब उन्होंने संजय को यह दिव्य दृष्टि दिया जिससे वो महाभारत युद्द हस्तिनापुर में बैठे बैठे देख सके।
श्री कृष्ण के गीता ज्ञान देने के बाद फिर वेद व्यास जी ने गीता, महाभारत, रामायण, पुराण और फिर श्री मद भगवत महापुराण को लिपि वद्ध श्री गणपति गणेश जी के सहायता से किया/ गणेश जी ने कहा वेद व्यास जी को कहा की वो एक बार लिखना प्रारम्भ करेंगे तो फिर लिखकर ही सारे ग्रथ को रुकेंगे।
इसलिए आप वेद व्यास जी निरंतर आप बोलते रहें. इस प्रकार पहले ही लिखकर वेद व्यास जी ने सारे ग्रंथो को बोलते गए और गणेश जी ने लिपिवद्ध किया. बहुत से लोगो को भ्रांतिया है की वेद व्यास चुके द्वापर में आये थे तो उन्होंने कैसे रामायण लिख दिया?
पर यह नॉट करने की बात हैं की भगवान् के सभी रूपों में श्री राम सबसे प्रमुख रूप माने जाते हैं और सनातन धर्म के आधार और पहचान माने जाते हैं। इसलिए, भगवान् श्री राम के बिना कोई ग्रन्थ और पुराण लिखा ही नहीं गया? इसलिए, श्री राम को ही तारक मन्त्र कहा गया हैं। भगवान् श्री राम की कथा भी वेद व्यास जी ने लिखा था जो आध्यात्मिक रामायण के नाम से प्रसिद्द हैं और अन्य और अनेको ग्रन्थ श्री राम पर भी उन्होंने लिखा हैं जो आम व्यक्ति को पता नहीं?
इनके अलावा एक व्यक्ति और भी था जिसने सम्पूर्ण महाभारत और भागवत गीता के हर एक वृतांत को अपनी आँखों से देखा था. और वो महापुरुष थे स्वयं महान बर्बरीक. जिसे महाभारत की युद्ध के खत्म हो जाने के बाद उन्होंने महाभारत और गीता के हर घटना को उन्होंने स्वयं पांचो पांडवो और द्रौपदी के सामने सुनाया था कि किस तरह वासुदेव ने पूरी युद्ध को अकेले ही समाप्त किया था।
जहां तक समय के ठहर जाने की बात है तो उस विषय को विस्तार से बताया जा सकता है। इसके लिए एक अलग चर्चा आवश्यक होगी जिसमें विस्तार के साथ विषय को प्रस्तुत किया जाएगा।
अभी इतना बता सकता हूं कि समय का ठहर जाना, समय की गति से भी आगे चले जाना या समय की गति के पीछे चले जाना आदि कोई अतिशयोक्ति नहीं है बल्कि वास्तविकता है। यह होता रहा है, हो भी रहा है और होता भी रहेगा किन्तु इस रहस्य को कोई पकड़ नहीं सकता क्योंकि समय का विज्ञान वही जान सकता है जिसने समय पर विजय पा ली हो। ऐसा व्यक्ति शरीर धर्म से ऊपर उठ जाता है और अपनी इच्छानुसार काल के किसी भी खण्ड में स्वयं के साथ साथ औरों को भी ले जा सकता है। यही उस समय भी हुआ था जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।
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