Sunday, November 17, 2019

अगर हर इंसान में परमात्मा का अंश है, तो फिर क्यों संसार में इतने पाप और अधर्म होते हैं?

हर इंसान में ही नहीं इस सृष्टि के प्राणी मात्र में उन भगवान् का अंश है| ईश्वर अंश जीव अविनाशी, सहज अमल चेतन सुख राशि- श्री राम चरित्र मानस|

क्योंकि, भगवान् ही अपने अंश से हर प्राणी में वो चेतना और दिव्य शक्ति प्रदान करते हैं जिसके कारण वो जिन्दा रहते हैं और उन्हें हर प्रकार के सोचने समझने की शक्ति प्राप्त होती हैं|

ईश्वर का अस्तित्व प्राणी मात्र में ठीक उसी प्रकार से है जैसे की बिजली वो चाहे आप ट्रैन चलाने में उसका उपयोग भी करते हैं और घर में लाइट जलने या फिर टीवी से लेकर मोबाइल रिचार्ज करने के लिए| घर के लगभग चूल्हे/ओवन से लेकर प्रेस यानी कपडे आयरन भी बिजली से ही करते हैं| यानी बिजली से ही हमारे आपके जीवन में बहुत सारे काम संपन्न होते हैं|

यदि उसी बिजली को लोग पानी में तार डालकर कूद जाएँ या गलती से वो व्यक्ति के स्पर्श होजाये तो फिर क्या होगा? क्योंकि, बिजली /ऊर्जा आप के जीवन में सही उपयोग के लिए बना है और यदि आपने उसका गलत उपयोग करेंगे तो उससे किसी की मौत भी हो सकती है और उसके गलत उपयोग से बहुत कुछ अनिष्ट हो सकता है|

अतः ठीक यही स्थति जीवात्मा की हैं| भगवान् ने जीव को जन्म देकर उन्हें ऊर्जा अपने दिव्य शक्ति प्रदान कर किया और गलत और सही कर्म भी बता दिए की क्या सही हैं और क्या गलत है| पर यदि उसी चेतना या ऊर्जा को प्राप्त कर कोई पाप करें, बलात्कार करें या किसी की हत्या करे तो इसमें उन ईश्वर या भगवान् की क्या गलती?

भगवान् ने तो हमें वेद, संत ऋषि मुनि के साथ रामायण, पुराण, गीता,महाभारत आदि ग्रन्थ दिए जो हमें बताते हैं की हमें जीवन में क्या करने चाहिए? पर कोई उसे न मानकर अपने तरह से चले और पाप में रत हो तो फिर यह गलती ईश्वर की नहीं हैं|

जो जैसे करेगा, वैसे उस फल भुगतना होगा यह भी भगवान् ने कहा हुआ है। बिजली का गलत प्रयोग यदि लोग करेंगे तो क्या उसे करंट नहीं लगेगा?

बस इसी कारण लोग चुके अपने तरह से आज के कलियुग में धर्म और भगवान् की व्याख्या करने लगे हैं तो फिर आज पाप और घोर पाप और अनाचार, दुराचार, अत्याचार, बलात्कार, पापचार, हो रहे हैं| इसके लिए ईश्वर या भगवन दोषी नहीं बलिक आज का मानव लोग हैं जो दिव्य शक्ति ईश्वर का प्राप्त कर उसका द्रुप्योग कर रहे हैं| पर इसके फल निश्चित हैं जो लोगो को शायद पता नहीं|

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