वेद पुराण का एक साथ नाम ले देना, सामान्य चर्चा में अक्सर होता है। परन्तु वेद और पुराण में मूलभूत अन्तर है।
वेद-
मनुष्य के समक्ष, मनुष्य के ही लिये ज्ञान, कर्म, उपासना और प्रकृति के रूप में विद्या का जो स्वतः सिद्ध स्रोत उपस्थित है उसे वेद कहते हैं।
वेद कोई किसी की लिखी पुस्तक नहीं है। सृष्टि और प्रलय के स्वाभाविक या स्वतः चलने वाले चक्र में हर सृष्टि के प्रारम्भ में, लोक-कल्याण को समर्पित, कठिन तपस्या द्वारा ग्रहण करने से कारण, कार्य व परिणाम को समझ सकने वाले ऋषियों को होने वाला आत्मसार ज्ञान वेद है। समस्त जीवन के सार और रचना को व्याख्यान करने के कारण ऋचा है। ऋषियों के अंतःकरण से प्राप्त होने के कारण मन्त्र रूप में है। एक ऋषि से अन्य ऋषियों तक सुनने-सुनाने से पहुंचने वाला होने के कारण श्रुति है। भूत, वर्तमान और भविष्य में अपरिवर्तनीय होने के कारण शास्वत, सनातन और सत्य है।
पुस्तक रूप में संकलन और लिखना तो सभ्यता का अंग है। जो कभी भोजपत्र, कभी कपड़े, कभी कागज या वर्तमान के आभासी(virtual) डिजिटल रूप में होता रहता है।
पुराण-
पुराणों जो अठारह माने जाते हैं वे अलग-अलग महान व्यक्तियों, शासकों उनकी शक्तियों, उनकी उत्पत्ति, प्रेरणा, जीवन और जीवन व्यवहार व आमजन के द्वारा उनके अनुसरण या विरोध की घटनाओं का इतिहास या भूतकाल के वर्णन हैं।
पुराणों की कुछ विशेषतायें भी हैं। वेद अनुकूल व वेद आधारित ज्ञान को सामान्य जन तक पहुंचाने के लिये विशेष अलंकृत भाषा का प्रयोग पुराण-आख्यान में किया है। इतिहास वृतांत से विशेष शक्तिधारियों की शक्ति का महिमा गान भी पुराणों में किया गया है।
पुराणों में ज्योतिषिय गणनाओं के आधार भविष्य कथन के फलित ज्योतिष से भविष्यवाणी भी की गयी है। भविष्य कथन में सदैव संभावित परिस्थितियों का आकलन होता है जो संयोगवश, कथनानुसार कुछ अलग या विपरीत भी हो सकती हैं। बिलकुल उसी प्रकार जैसे आज भी विशेषज्ञ प्रकृति या समाज के रूप की भविष्य कल्पना करते रहते हैं। वे उसी तरह हों, जैसा कहा गया, यह जरूरी नहीं।
पुराणों के विषय में जो असंभव कथन आदि का भ्रम होता है, उसका कारण पुराणों की अलंकारिक काव्य शैली है। अलंकारित भाषा का शाब्दिक अर्थ हमेशा भावार्थ से मेल नहीं खाता, इसीलिये वो विषय असंभव लगता है। आपके समक्ष विष्णु पुराण के दो स्क्रीन शाट रख रहा हूं-
स्क्रीन शाट नं.1-
स्क्रीन शाट नं. 2-
पहले स्क्रीन शाट में कलियुग के मनुष्यों का व्यवहार तथा दूसरे में वणासुर के मंत्री की पुत्री चित्रलेखा का चित्रपट या टीवी बनाना वर्णित है।
विष्णुपुराण के लिखे जाने का समय तो लगभग पांच हजार वर्ष से भी पहले का है। इतिहासकारों की मानकर यदि मध्यकाल की मिलावट को भी ध्यान में रखे तो कम से पांच सौ वर्ष पहले प्रक्षिप्ति या मिलावट हुई होगी।
इस आधार पर आप ही बताईये कि पांच सौ वर्ष पहले आज के मानव व्यवहार व विज्ञान के आविष्कार कैसे पता चल गये।
ऐसी बहुत बातें हैं पुराणों में जिसे अल्पज्ञान या पूर्वाग्रह के कारण असंभव या कल्पना कहकर नकार देना वर्तमान मनुष्यों की प्रवृति हो गयी है।
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