Saturday, February 15, 2020

महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का ही साथ क्यों दिया था?

महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन का ही साथ क्यों दिया, इसके प्रत्यक्ष रूप से कई कारण हैं।

कृष्ण ने कौरवों का साथ क्यों नहीं दिया, इसका कारण तो स्पष्ट है। कौरव अधर्म के साथ थे। दुर्योधन, शकुनि, कर्ण व दुशासन अधर्म के वृक्ष के हिस्से थे, जिन्हें समूल नष्ट करना था। अतः इनमें से किसी का भी साथ देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि कृष्ण तो स्वयं ही धर्म थे। भीष्म, द्रोण, कृप इत्यादि ज्ञानी होते हुए भी अपने निजी कारणों से अधर्म के ध्वज तले ही युद्ध कर रहे थे, तो इनमें से भी किसी का साथ कृष्ण नहीं दे सकते थे। अज्ञानी को ज्ञान दिया जा सकता है, किन्तु जो ज्ञानी होते हुए भी आँख मूँद ले उसका कोई उपाय नहीं है।

तो साथ तो कृष्ण पांडवों का ही देते। किन्तु उनमें भी मात्र अर्जुन का ही क्यों? इसके कई कारण हैं।

  • सबसे पहली बात तो यह, कि अर्जुन व कृष्ण में अत्यंत घनिष्ठ मित्रता थी। कुंती कृष्ण की बुआ थीं, इस तरह वो सम्बंधी थे। सुभद्रा के अर्जुन से विवाह के उपरांत यह सम्बंध और गहरा हो गया। कृष्ण अधिक समय तक अर्जुन से दूर नहीं रहते थे, व जब तक पांडव इंद्रप्रस्थ में रहे कृष्ण अक्सर अर्जुन से मिलने आते रहते थे। वनवास काल में भी जब भी अर्जुन पांडवों के साथ होते थे, कृष्ण उनसे मिलने आते थे। किन्तु इसके विपरीत अर्जुन की अनुपस्थिति में कृष्ण का ना इंद्र्प्रस्थ जाने का विवरण मिलता है व ना वनवास में अन्य पांडवों के पास जाने का। तो पांडवों में भी कृष्ण को प्रिय अर्जुन थे, व किसी अन्य से उन्हें इतना अधिक प्रेम व स्नेह नहीं था।
  • युधिष्ठिर व भीम दोनों कृष्ण से आयु में बड़े थे, व नकुल व सहदेव छोटे। पहले दो का आदर कृष्ण करते थे व अंतिम दो कृष्ण का आदर करते थे। अर्जुन व कृष्ण की आयु में मात्र कुछ माह का ही अंतर था; कृष्ण का जन्म भाद्रपद में हुआ था व अर्जुन का उसके बाद के फाल्गुन में। कृष्ण व अर्जुन एक दूसरे से हमउम्र की तरह आचरण करते थे, व इस कारण भी उनमे घनिष्ठता अधिक थी।
  • आयु के अंतर के कारण कृष्ण युधिष्ठिर व भीम को अधिकारपूर्वक कुछ करने के लिए नहीं कह सकते थे। वैसे भी युधिष्ठिर कोई प्रचंड योद्धा नहीं थे; उनके सारथी बनकर कृष्ण कुछ नहीं कर सकते थे। भीम को युद्ध में ना किसी के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी व ना वो किसी की बात सुनते थे। अश्वत्थामा के नारायनास्त्र से भीम को बचाना इसी कारणवश कठिन हो गया था क्योंकि वो कृष्ण का परामर्श मानने को तैयार नहीं थे। नकुल व सहदेव भी इतने विकराल योद्धा नहीं थे जो युद्ध का परिणाम बदल सकें। इसके विपरीत अर्जुन अपने समय के सबसे भीषण योद्धा भी थे व कृष्ण की हर बात मानते थे।
  • घनिष्ठता के कारण भी दोनों का आपसी तारतम्य अद्भुत था। दोनों को पता था कि कब उन्हें अपनी सुनानी है व कब दूसरे की सुननी है। कब योद्धा को सारथी का परामर्श मानना है व कब सारथी को योद्धा के बल पर भरोसा कर उसका मत स्वीकार करना है। इतने बड़े युद्ध में अपने रथ की बागडोर अर्जुन कृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य को नहीं दे सकते थे, व इतने बड़े युद्ध में शस्त्र ना उठा मात्र सारथी बनने का संकल्प कृष्ण अर्जुन के अतिरिक्त अन्य किसी के लिए नहीं कर सकते थे। दोनों को स्वयं से अधिक दूसरे पर विश्वास था। इसी कारणवश इन दोनों की जोड़ी युद्ध में पांडवों की विजय का सबसे बड़ा कारण थी।
  • अर्जुन का साथ देने का सबसे बड़ा कारण है प्रारब्ध। कृतयुग में नर व नारायण दो जुड़वाँ भाई थे जो महान ऋषि थे। उन्होंने बद्री धाम में अपने आश्रम में सहस्त्रों वर्षों तक तपस्या की थी। इनकी तपस्या से विचलित हो इंद्र ने मेनका, रम्भा इत्यादि अप्सराओं को भेजा था, जिसके उत्तर में नारायण ने अपने उर्वर से अपने तप द्वारा उनसे भी अधिक सुंदर व नृत्य में पारंगत उर्वशी को उत्पन्न किया, जिससे अप्सराओं व इंद्र का घमंड टूट गया। इन दोनों ने मिलकर राक्षस दंडोद्भव का भी संहार किया था। ये दोनों विष्णु का ही अंश थे। इन्हीं दोनों के अवतार थे अर्जुन (नर) व कृष्ण (नारायण)। इनका जन्म ही इसलिए हुआ था कि ये दोनों मिलकर फिर से धर्म की स्थापना करेंगे। धर्म का मार्ग दिखाएँगे नारायण व धर्मानुसार कर्म करेंगे नर। इसी कारण से कृष्ण अर्जुन के अतिरिक्त अन्य किसी का साथ दे ही नहीं सकते थे। क्योंकि दोनों ही जन्म-जन्मांतर से साथ हैं व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। युधिष्ठिर ने भी स्वर्ग पहुँच कर अपने सभी भाइयों को उनके जैविक पिता के लोक में पाया, जैसे कर्ण को सूर्यलोक में, भीम को मरूतों के साथ, नकुल सहदेव को अश्विन कुमारों के साथ, किन्तु अर्जुन को उनके नर रूप में नारायण रूपी कृष्ण के साथ। उन दोनों को जब मृत्यु अलग नहीं कर सकी तो कोई अन्य मानव या मानवी समस्या या कारण क्या करते! महाभारत है ही नर-नारायण की गाथा, जिन्होंने अधर्म पर विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना की, किन्तु स्वयं के लिए दोनों में से किसी ने कुछ नहीं लिया। महाभारत धर्म की रक्षा के लिए कार्य करने के इसी निस्वार्थ भाव को दर्शाता है। यदि ये दोनों साथ ना होते व अपनी लीला ना रचते तो इस विश्व को गीता का व्यावहारिक व धर्म से ओतप्रोत ज्ञान कैसे प्राप्त होता!

द्वापर के अंत में कृष्ण व अर्जुन का जन्म ही इस कारण से हुआ था, कि ये दोनों मिलकर अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना करें। तो एक ने अधर्म के विनाश के लिए कर्म किया व दूसरे ने उसकी बागडोर संभाल उसे धर्म का मार्ग दिखाया। और यह सम्पूर्ण जगत अनुग्रहित हो गया।

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