मेरे विचार से अभिमन्यु की मृत्यु निश्चित थी और तर्कसंगत भी।
अभिमन्यु वास्तव में चंद्र देव के पुत्र अवतार थे। जब चंद्र देव से कहा गया कि वह अपने पुत्र को पृथ्वी पर जन्म लेने दें तो उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि पुत्र मोह के कारण वह सिर्फ 16 वर्षों तक अपने पुत्र से दूर रह सकते हैं। अतः सोलह वर्ष बाद उनके पुत्र को वापस लौटना होगा। इसलिए 16 वर्षीय अभिमन्यु की मृत्यु तर्कसंगत थी। और मौत को कभी टाला नहीं जा सकता।
अभिमन्यु सिर्फ सोलह वर्ष जीवित रहेंगे , यह बात श्रीकृष्ण को पहले से ही पता थी। इसलिए सुभद्रा के गर्भ धारण के समय , जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह के बारे में बता रहे थे तो कृष्ण ने अर्जुन को सिर्फ चक्रव्यूह में घुसने तरीका सुभद्रा को बताने दिया जो कि अभिमन्यु ने गर्भ में सुन लिया। जैसे ही चक्रव्यूह तोड़ने की बात शुरू हुई , तब सुभद्रा सो गए ओर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को किसी काम से बाहर बुला लिया और बात अधूरी ही रह गई। अतः चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान अभिमन्यु को नहीं मिल सका।
एक और भी दृष्टिकोण से देखें तो भी अभिमन्यु की मौत ज़रूरी थी। कृष्ण अर्जुन को क्रोध से भरना चाहते थे , तभी अर्जुन कौरवों की विशाल सेना का सफाया कर सकते थे।परन्तु अर्जुन दुविधा में थे क्योंकि अपने सगे संबंधियों से लड़ना नहीं चाहते थे। वह अपने गुरुजन और बड़ों से भी नहीं लड़ना चाहते थे। इसलिए अर्जुन में क्रोध और उग्रता उत्पन्न करने के लिए श्रीकृष्ण ने यह तरकीब सोची। अभिमन्यु की मौत के बाद ही युद्ध पांडवों के पक्ष में मुड़ा और कोरवों को हराने में उन्होंने अपनी पूरी जान लगा दी।
देखिए अभिमन्यु एक तेजस्वी , बुद्धिमान और जोशीले योद्धा थे।उनकी महानता उस समय तक विश्व भर में प्रसिद्ध थी।तो जाहिर सी बात है कि उनकी रण नीति सर्वोत्तम ही रही होगी। जो योद्धा पितामह भीष्म को चुनौती दे सकता था , वह अपने प्रयास में कोई कमी कैसे छोड़ सकता था? बस बात इतनी सी है कि मौत को टालना असंभव है। अगर चक्रव्यूह के रूप में नहीं तो मौत और किसी रूप में अभिमन्यु के सामने प्रकट हो जाती।
हो सकता है कि हममें से ही कोई बुद्धिमान व्यक्ति कोई रण नीति बता भी दें जोकि सुनने में अच्छी लगे। परन्तु वास्तव में महाभारत एक ऐसी उत्तम कथा है जिसमें हर घटना के पीछे कोई ना कोई कारण ,या आगे कोई कोई मकसद अवश्य होता था। तो जो कुछ भी महाभारत में हुआ उससे बेहतर और कुछ संभव ही नहीं था। यही सच है।

No comments:
Post a Comment