
युद्ध समाप्त होते ही कृष्ण और हनुमान जी रथ से उतरे कि रथ मै आग लग गयी इसका अध्यात्मिक अर्थ हे
की रथ शरीर हे इसमे आत्मा कृष्ण हे,और श्वास ही हनुमान हे ,शरीर से श्वासरूपी हनुमान और आत्मारूपी कृष्ण के निकलते ही इस शरीर रूपी रथ मै भी चिता के रूप मै आग लग जाती हे।
धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश देकर महाभारत युद्ध का चक्रव्यू रचा, इस युद्ध में धर्म-अधर्म, असत्य-सत्य, जीवन से जुड़े कई सार को जानने की रोचक गाथा हैं.महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ से जुड़ी भी बेहद दिलचस्प कथा है। यह ऐसा रथ था जिसके ऊपर पताका में हनुमानजी विराजमान थे और इसके सारथी स्वयं श्रीकृष्ण थे। यही नहीं, शेषनाग ने पृथ्वी के नीचे से अर्जुन के रथ के पहियों को पकड़ रखा था ताकि इस महत्वपूर्ण युद्ध में एक पल के लिए रथ का संतुलन नहीं बिगड़े|
फिर ऐसा क्या हुआ कि अर्जुन का ये दिव्य रथ युद्ध के बाद जलकर खाक हो गया?
ऐसी कथा है कि महाभारत के युद्ध के ठीक बाद अर्जुन के रथ में आग लग गई थी और ये जलकर स्वाहा हो गया। यह ऐसा रथ था जो जररूत पड़ने पर किसी भी दिशा और किसी भी लोक में भ्रमण कर सकता था। महाभारत के अनुसार, जब कौरव सेना का नाश हो गया तो दुर्योधन भाग कर एक तालाब में छिप गया। पांडवों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारा। दुर्योधन तालाब से बाहर निकला और भीम ने उसे पराजित कर दिया। दुर्योधन को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर पांडव अपने-अपने रथों पर कौरवों के शिविर में आए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, बाद में वे स्वयं उतरे।
अर्जुन का रथ युद्ध के बाद इसलिए जल गया था, श्रीकृष्ण ने बताया राज़
श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी भी उड़ गए। तभी देखते ही देखते अर्जुन का रथ जल कर राख हो गया। यह देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से पहले ही जल चुका था, सिर्फ मेरे बैठे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। जब तुम्हारा काम पूरा हो गया, तभी मैंने इस रथ को छोड़ा। इसलिए यह अभी भस्म हुआ है।
No comments:
Post a Comment