Friday, May 1, 2020

महाभारत में शकुनि ने बदला लेने का षड्यंत्र क्यों बनाया था?

महाभारत में शकुनि पर हुआ था अत्याचार ...

यह लोकमान्यता है और सम्भवतः कुछ पुराणों में भी आया है कि शकुनि ने कुरुवंश के कारण हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए कौरव पाण्डवों में फूट डाली और इस प्रकार भारत के इस सबसे प्रतिष्ठित राजवंश को विनाश के कगार पर पहुँचाकर अपना बदला लिया। यह अपमान क्या था इस बारे में दो मत हैं। एक मत के अनुसार शकुनि अपनी बहिन का अन्धे धृतराष्ट्र से विवाह होने से नाराज था और इसे वह अपना अपमान मानता था। (इस मत के अनुसार यह विवाह भीष्म के दबाव में हुआ था।) दूसरे मत के अनुसार कुरुवंशियों ने शकुनि के पूरे परिवार को जेल में डालकर और निराहार रखकर खत्म कर दिया था। केवल शकुनि बचा था जिसने अपने परिवार की इस दुर्दशा का बदला लेने का संकल्प किया था। यह भी कहा जाता है कि कारागार में मरते समय सुबल (शकुनि के पिता) ने उसे अपनी हड्डी से पासा बनाने को कहा था और इस पासे की चमत्कारिक शक्ति से ही शकुनि जुए में हर बार जीतता था।

किन्तु लोकमान्यताएँ और मिथक सत्य का मानदण्ड नहीं होतीं। यद्यपि यह सच है कि महाभारत के प्रमाण मुख्यतः साहित्यिक हैं तभी भी प्रामाणिक और अप्रामाणिक स्रोतों में अन्तर होता है। महाभारत की घटनाओं की प्रामाणिकता का आधार वेदव्यास रचित महाभारत ही हो सकती है न कि बी आर चोपड़ा व अन्य धारावाहिक निर्माताओं द्वारा बनाये गये धारावाहिकों में प्रस्तुत महाभारत का विवरण। इस प्रकार से और मापदण्ड भी हो सकते हैं जिनसे महाभारत की तमाम घटनाओं का प्रामाणिक रूप समझने का प्रयास किया जा सकता है।
मेरे विचार से न तो शकुनि के किसी अपमान की घटना प्रामाणिक समझी जा सकती है न ही उसके द्वारा किसी प्रकार का बदला लेने की बात को सच माना जा सकता है। इस बात के निम्न आधार हैं।
१- वेदव्यास रचित महाभारत में ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है। गान्धार पर कुरुवंशियों के आक्रमण, शकुनि के पूरे परिवार की दुःखद मृत्यु व शकुनि द्वारा इसका बदला लेने की बात न तो महाभारत में आती है न ही विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण व वायु पुराण जैसे प्रामाणिक पुराणों में। स्वयं महाभारत में भीष्म के पराक्रम की घटनाओं के सन्दर्भ में परशुराम से युद्ध और काशिराज की कन्याओं के अपहरण के सम्बन्ध में हुए युद्ध की चर्चा की गयी है पर गान्धार या अन्य किसी देश में उनके किसी सैनिक अभियान का जिक्र नहीं आया है। हरिवंश पुराण व अन्य कुछ पुराणों में यह भी आया है कि भीष्म ने उग्रायुध नाम के राजा का सुरक्षात्मक युद्ध में वध किया था पर गान्धार से हुए उनके किसी भी युद्ध की कोई भी चर्चा नहीं है। अतः इन घटनाओं में कोई सच्चाई नहीं प्रतीत होती।
शकुनि के परिवार का कुरुवंशियों द्वारा विनाश कराने की बात गलत है क्योंकि स्वयं महाभारत के अनुसार युद्ध के सातवें दिन अर्जुन के पुत्र इरावान के हाथ शकुनि के छह छोटे भाई गज, गवाक्ष, वृषभ, चर्मवान, आर्जव और शुक मारे गये थे। यदि कुरुवंशियों ने पहले ही शकुनि के सभी भाइयों को मरवा डाला था तो इन भाइयों का जीवित रहना सम्भव ही नहीं था। अतः कुरुवंशियों द्वारा शकुनि के परिवार का संहार कराने की बात निश्चित रूप से गलत है।
२- अक्सर यह कहा जाता है कि भीष्म ने अपनी शक्ति के बल पर सुबल पर दबाव डालकर गान्धारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने के लिए उसे विवश किया। शकुनि ने इसे अपना व्यक्तिगत अपमान माना और उसने इसका बदला लिया। पर इस बात को मानना कठिन है। भीष्म पितामह के बारे में जो भी हमें पता चलता है उससे यही सिद्ध होता है कि उनकी विदेश नीति कभी भी इतनी आक्रामक नहीं थी कि उनसे भय का कोई कारण हो। दूसरे देशों पर किये उनके किसी भी अभियान की चर्चा नहीं आती। और तो और अपने भाई चित्राङ्गद के हत्यारे गन्धर्वों तक से उनके बदला लेने की कोई बात हमें नहीं सुनाई पड़ती। (चित्राङ्गद गन्धर्वों से युद्ध करते हुए मारा गया था।) काशीराज की कन्याओं के अपहरण की घटना स्मरण करके गान्धारनिवासी इस बात की आशंका कर सकते थे कि भीष्म उनकी राजकुमारी का जबरन अपहरण कर सकते हैं पर उस समय जबकि राक्षस विवाह असामान्य नहीं थे यह भय का कारण नहीं हो सकता था। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यद्यपि उस समय युद्ध बहुत होते थे तभी भी युद्धों में राजाओं को मारने की घटनाएँ कम ही होती थीं और किसी राजा को हराने के बाद उसका राज्य हड़पने की घटनाएँ तो न के बराबर होती थीं। यह भी स्मरणीय है कि उस समय के राजा वीरभाव से भरे होते थे और बल के भय पर उन्हें बेटी समर्पित करने के लिए बाध्य करना सरल नहीं था। अतः यह मानने का आधार नहीं है कि भीष्म ने दबाव डालकर सुबल को गान्धारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने को विवश किया।
यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि बिना किसी दबाव के सुबल गान्धारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने को कैसे तैयार हो गया। मेरे विचार से इसका कारण यह रहा होगा कि भीष्म और सुबल दोनों ही इस बात की पूरी सम्भावना कर रहे थे कि कुरु राजसिंहासन का उत्तराधिकारी धृतराष्ट्र का पुत्र ही होगा और इस बात पर दोनों में बातचीत हुई होगी। कुरु राजवंश की इतनी प्रतिष्ठा थी कि उसका उत्तराधिकारी अपना नाती हो यह कल्पना सुबल के लिए बड़ी सुखद थी। राजवंशों में हुए विवाहों में राजनीतिक आकांक्षाएँ ही सर्वोपरि होती हैं यह एक जाना माना सच है।
३- इस बात के महाभारत या प्रामाणिक पुराणों में कोई संकेत नहीं हैं कि शकुनि कुरुवंश से कोई शत्रुता मानता था या बदला लेने का कोई संकल्प उसके मन में था। उसने जो भी किया वह अपने भानजों के लिए किया। उनके हित के लिए उसने अपने जीवन का अधिकांश भाग अपने राज्य से दूर हस्तिनापुर में बितायाऔर उन्हीं के लिए लड़ते हुए उसकी मृत्यु भी हुई।
शकुनि को महाभारत के सबसे बुरे चरित्र के रूप में जाना जाता है पर उसमें कम से कम दो गुण बेहद सकारात्मक थे। पहला गुण अपने भानजों के हित के प्रति उसका समर्पण था जिसकी चर्चा मैं पहले कर चुका हूँ। दूसरा गुण उसकी नीतिकुशलता थी।(यद्यपि उसकी षड्यन्त्रकारी प्रकृति और सिद्धान्तहीन छलनीति की प्रशंसा नहीं की जा सकती।) वह इस बात को समझता था कि युद्ध से पाण्डवों को नहीं जीता जा सकता अतः उसने पाण्डवों को मारने के लिए लाक्षागृह काण्ड जैसे षड्यन्त्र रचे और उनका राज्य हड़पने के लिए जुए की सलाह दी। बाद में घोषयात्रा युद्ध में दुर्योधन की पराजय और अपमान के बाद उसने दुर्योधन को पाण्डवों से सन्धि करने की राय भी दी। दुर्योधन के मन में पाण्डवों के प्रति इतना द्वेष भरा था कि उसने यह बात नहीं मानी और इसके बाद शकुनि द्वारा दुर्योधन को सलाह देने की कोई चर्चा नहीं आती।
यह एक निश्चित सम्भावना है कि यदि दुर्योधन कर्ण जैसे अदूरदर्शी मित्र की अपेक्षा शकुनि और अश्वत्थामा जैसे अपने असली हितचिन्तकों की राय पर ध्यान देता तो पाण्डवों के साथ उसकी स्थायी सन्धि हो सकती थी और महाभारत का विनाशकारी युद्ध टाला जा सकता था।

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