यदि गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमानजी को इतने सारे गुणों का भंडार बताया है तो जिज्ञासावश प्रश्न यह उठता है कि उनके किस स्वरुप की पूजा-आराधना करनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए चलिए चलते हैं कुछ प्राचीन मंदिरों की ओर… और ढूंढते हैं कुछ सिद्धहस्त कलाकारों के अप्रतिम चित्र!
आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में चौथी शताब्दी में निर्मित उण्डावल्ली गुफ़ा में मारुति का शिल्प बारीकी से देखिए। मुख पर सौम्य भाव धारण किए मारुति की पुच्छ ज़मीन पर उनके पैरों के पास है। हनुमानजी की इस मुद्रा को ‘दास मारुति’ कहा गया है। जब हनुमानजी को भगवान श्री राम के साथ दिखाया जाता है तब उनका समस्त अस्तित्व राममय होता है और हनुमानजी का यह दास्य भाव हमारे मन मस्तिष्क में एक अनूठी भावमय चेतना का सँचार करता है।
वीर मारुति और दास मारुति की प्रतिमाओं के अभ्यास का सबसे रसप्रद पहलू यह है कि वीर मारुति के चेहरे पर भी सौम्य भाव दर्शाए जाते हैं और वीरता के भाव स्पष्ट करने के लिए उनकी पुच्छ का सांकेतिक रूप से उपयोग किया जाता है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों किया जाता है?
प्रतिमा विज्ञान में शिव की संहारमूर्ति, वीरभद्र और महिषासुरमर्दिनी दुर्गा जैसे कुछ एक अपवादों को छोड़कर अन्य सभी देव प्रतिमाओं को सौम्य भाव में दिखाया जाता है। द्रोण पर्वत उठाए, लंका में रावण की सेना के साथ युद्धरत और लंका दहन करते मारुति की मूर्तियां ‘वीर मारुति’ की श्रेणी में आती हैं लेकिन इन प्रतिमाओं में भी हनुमानजी को चेहरे से सौम्य भाव का लोप नहीं होता। भूत-बाधा, विपत्ति या महत्वपूर्ण परीक्षा के समय और जीवन में साहसिक निर्णय लेते समय वीर मारुति की आराधना करते है। महाराष्ट्र के समर्थ स्वामी रामदास जी ने पराधीनता की मानसिकता से ग्रस्त युवाओं को राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए जागृत करने हेतु अनेक गाँवों में वीर मारुति के मंदिरों की स्थापना की थी।
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