Tuesday, August 25, 2020
श्री कृष्ण और 16 कलाएं
Sunday, August 23, 2020
श्री कृष्ण के तीन बालरूप और हिन्दू मंदिरों में उनका चित्रांकन
हिन्दू मंदिरों में देवी देवताओं के शिल्पों को हम दो मुख्य विभागों में वर्गीकृत कर सकते हैं; वैदिक देवता और पौराणिक अवतारों की कथाओं के शिल्प। पौराणिक अवतारों के जीवन लीला के प्रसंगों के अनुसार इनमे काफी वैविध्य देखा जाता है। इन कथाओं में सबसे अधिक लीलाधारी अवतार निसंदेह ही श्रीकृष्ण का है इसलिए कृष्ण की प्रतिमाओं में विविधतासभर प्रकारांतर होता है। चलिए कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आज बालकृष्ण के ऐसे ही तीन स्वरूपों को मंदिर कला के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
वेणुगोपाल कृष्ण
वेणुगोपाल उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक भारत के सभी प्रदेशों के लोगों के पसंदीदा हैं। इस प्रतिमा में मेघवर्णी श्यामसुन्दर अपने प्रिय गोप-गोपियों से घिरे होते हैं। वृक्षों से आच्छादित पृष्ठभूमि में गायों तथा बछड़ों को दिखाया जाता है। दोनों हाथों में कलात्मक रूप से बांसुरी धारण किए कृष्ण के अधरों पे मंद मंद मुस्कराहट होती है तथा अधबीडे नेत्रों में प्रेम का भाव होता है। दोनों पैरों को नृत्य मुद्रा में मोडे हुए वेणुगोपाल अपने सखा गोप-गोपियों के साथ होने के कारण इन्हें “गण-गोपाल” भी कहा जाता है।
कालिया मर्दक कृष्ण
कालियामर्दन का प्रसंग सभी को ज्ञात है इसलिए उसकी पुनरावृत्ति ना करते हुए सीधे इसके प्रतिमा विज्ञान का विवरण देखते हैं। कालिय मर्दक बालकृष्ण को सौम्य मुद्रा में कालिय नाग के मस्तक पर नृत्य करते हुए दिखाया जाता है। बाएं हाथ में सर्प की पुच्छ पकडे कृष्ण का दूसरा हस्त अभय मुद्रा में होता है। यह एक तरह से अनिष्टों से अभय का प्रतीकात्मक चित्रण है। यदि इस प्रतिमा से कालिय नाग निकाल दें तो फिर यह प्रतिमा को “नवनीत नृत्य कृष्ण” प्रतिमा कहा जाएगा। इस प्रतिमा को ज्यादा आभूषणों से नहीं सजाया जाता। तंजौर से एल्लोरा तक के मंदिरों में इस प्रतिमा को उकेरा गया है और सभी प्रतिमाओं की समरूपता ध्यानाकर्षक है।
गोवर्धनधर कृष्ण
व्रजवासियों की रक्षा हेतु अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत धारण किए कृष्ण की विशेषता यह है कि इन प्रतिमाओं में कालिय मर्दक और वेणुगोपाल की भांति समरूपता नहीं होती। किसी स्थान पर कृष्ण दाएं हाथ से गोवर्धन उठाते हैं तो किसी मंदिर में बाएं हाथ से, इसका सबसे आश्चर्यजनक अवलोकन होयसला स्थापत्य में देखा गया है जहाँ के ही शैली की विभिन्न मूर्तियों में भी विषमताएं देखि गईं है। नुग्गेहल्ली के गोवर्धनधर कृष्ण हालेबिडु के गोवर्धनधर से एकदम अलग तरीके से बनाये गए हैं।
दास मारुति और वीर मारुति
यदि गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमानजी को इतने सारे गुणों का भंडार बताया है तो जिज्ञासावश प्रश्न यह उठता है कि उनके किस स्वरुप की पूजा-आराधना करनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए चलिए चलते हैं कुछ प्राचीन मंदिरों की ओर… और ढूंढते हैं कुछ सिद्धहस्त कलाकारों के अप्रतिम चित्र!
आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में चौथी शताब्दी में निर्मित उण्डावल्ली गुफ़ा में मारुति का शिल्प बारीकी से देखिए। मुख पर सौम्य भाव धारण किए मारुति की पुच्छ ज़मीन पर उनके पैरों के पास है। हनुमानजी की इस मुद्रा को ‘दास मारुति’ कहा गया है। जब हनुमानजी को भगवान श्री राम के साथ दिखाया जाता है तब उनका समस्त अस्तित्व राममय होता है और हनुमानजी का यह दास्य भाव हमारे मन मस्तिष्क में एक अनूठी भावमय चेतना का सँचार करता है।
वीर मारुति और दास मारुति की प्रतिमाओं के अभ्यास का सबसे रसप्रद पहलू यह है कि वीर मारुति के चेहरे पर भी सौम्य भाव दर्शाए जाते हैं और वीरता के भाव स्पष्ट करने के लिए उनकी पुच्छ का सांकेतिक रूप से उपयोग किया जाता है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों किया जाता है?
प्रतिमा विज्ञान में शिव की संहारमूर्ति, वीरभद्र और महिषासुरमर्दिनी दुर्गा जैसे कुछ एक अपवादों को छोड़कर अन्य सभी देव प्रतिमाओं को सौम्य भाव में दिखाया जाता है। द्रोण पर्वत उठाए, लंका में रावण की सेना के साथ युद्धरत और लंका दहन करते मारुति की मूर्तियां ‘वीर मारुति’ की श्रेणी में आती हैं लेकिन इन प्रतिमाओं में भी हनुमानजी को चेहरे से सौम्य भाव का लोप नहीं होता। भूत-बाधा, विपत्ति या महत्वपूर्ण परीक्षा के समय और जीवन में साहसिक निर्णय लेते समय वीर मारुति की आराधना करते है। महाराष्ट्र के समर्थ स्वामी रामदास जी ने पराधीनता की मानसिकता से ग्रस्त युवाओं को राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए जागृत करने हेतु अनेक गाँवों में वीर मारुति के मंदिरों की स्थापना की थी।
श्री राम का क्रोध और मरुभूमि का रहस्य
अयोध्या के राजकुमार मर्यादा पुरुषोत्तम राम सभी बाधाओं को पार कर अपनी पत्नी की खोज में भारत भूमि के आखरी छोर पर पहुँच चुके थे, अब महाबली दशानन की स्वर्ण नगरी लंका और श्री राम की वानरसेना के मध्य था अगाध समुद्र। मारुती और जामवंत जैसे कुछ सिद्ध योद्धाओं के आलावा कोई समुद्र लांघने में समर्थ नहीं था। अब क्या किया जाए? सीता माता को अशोक वाटिका से मुक्त कराने के लिए युद्ध अनिवार्य था। बिना लंका गए राक्षसराज को पराजित नहीं किया जा सकता था इसीलिए श्री राम ने समुद्र से अपनी लहरों को सेतुबंध का कार्य पूर्ण होने तक शांत रखने का अनुरोध किया।
श्रीराम ने दोनों हाथ जोड़ कर दर्भासन पर शाष्टांग प्रणाम करते हुए समुद्र की आराधना की और सैन्य को लंका तक पहुँचने का मार्ग खाली करने का आह्वान किया इसीलिए रामेश्वरम में आज भी रामचंद्र की शयन प्रतिमा की पूजा की जाती है। समुद्र ने ना कोई प्रत्युत्तर दिया और ना ही प्रत्यक्ष रूप से राम के समक्ष प्रकट हुए। वरुण देव की यह अवहेलना राम के लिए असहनीय थी फिर भी धर्मनिष्ठ और कूटनीतिज्ञ रामचंद्र नदियों के स्वामी की तीन दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे।तीन दिनों के पश्चात श्रीराम को क्रोध आना स्वाभाविक था। सीता के विरह से व्यथित राम के नेत्रों में क्रोधाग्नि की ज्वालाएं धधक रहीं थीं। उन्होंने अनुज लक्षमण जी से कहा “अब समुद्र के अहंकार की अति हो चुकी है, अब युद्ध ही अंतिम उपाय है। अब मैं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करूँगा और समुद्र को सूखा दूंगा और समुद्र वासी शंख, सीप, मत्स्य और मगरमच्छ जैसे सभी जीवों का अंत करूँगा।”
राम ने समुद्र को ललकारते हुए कहा “हे अहंकारी सागर, अब मैं अपने बाणों की ज्वालाओं से तुम्हे जल विहीन कर दूंगा और मेरे सैन्य के लिए लंका का मार्ग प्रशश्त करूंगा।” प्रभु राम ने ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया और इस महाविनाशकारी अस्त्र को धनुष पर चढ़ा कर प्रत्यंचा खींची। समस्त चराचर जगत में भय व्याप्त हो गया। स्वर्ग, पृथ्वी और आकाश में कोलाहल मच गया। पर्वत कांप गए और तेज आँधियों ने पहाड़ों के शिखरों को ध्वस्त कर दिया। डर के मरे समुद्र एक योजन पीछे चला गया। इस भीषण परिस्थिति में वरुण देव को प्रकट होना ही पड़ा। उन्होंने करबद्ध निवेदन करते हुए राम से कहा “समुद्र की सीमा में बदलाव प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। यदि वे ऐसा करते हैं तो इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं।”
राम का क्रोध थोड़ा शांत हुआ और उन्होंने वरुण देव से इस समस्या का समाधान पूछा। समुद्र ने राम सेना के अग्रगण्य वास्तुविद विश्वकर्मा पुत्र नल एवं नील को सेतु निर्माण की अनुमति दी। समुद्र ने अपने मगरमच्छ जैसे हिंसक जीवों को राम के सैनिकों का भक्षण न करने का आदेश दिया।
इस तरह से एक समस्या का समाधान हुआ लेकिन एक और समस्या खड़ी हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाया गया बाण वापिस उतारा नहीं जा सकता, अब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किस पर किया जाए। वरुणदेव ने इसका समाधान बताते हुए कहा कि ब्रह्मास्त्र का प्रयोग द्रुमकुल्य पर किया जा सकता है। द्रुमकुल्य दस्युओं का निवास है जो बार बार अपने पापकर्मों से समुद्र के पानी को दूषित करते रहते हैं। प्रभु राम ने लवणसमुद्र (लवण = नमक) पर बाण चला दिया, सभी दस्यु मारे गए, वनस्पति का नाश हो गया और उपजाऊ जमीन गर्मी से मरुभूमि में तब्दील हो गई। दस्युओं का अंत होने के पश्चात इस शापित भूमि को राम ने औषधियों और वनस्पतियों से पल्लवित होने का और हमेशा के लिए दूध/दही से भरपूर होने का वरदान दिया। महाभारत में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है।
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह मरुभूमि अरावली से पुष्कर के प्रदेश में होने के संकेत मिलते है। अरावली की पर्वत श्रृंखला औषधीय वनस्पतियों से भरपूर है। इस प्रदेश में गौपालन भी किया जाता है और मरुभूमि होते हुए भी यह प्रदेश राम कृपा से समृद्ध है। एक और रोचक बात यह भी है कि प्राचीन काल में राम ने जिस स्थान पर ब्रह्मास्त्र प्रयोग किया था उसी जगह अर्वाचीन में पोखरण के परमाणु प्रयोग भी किये गए। समस्त भारत में अपवाद स्वरुप पुष्कर में ब्रह्माजी का देवालय कहीं ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का प्रतीक तो नहीं?
हालाँकि कुछ जानकारों के मतानुसार यह द्रुमकुल्य प्रदेश कज़ाख़िस्तान के निकट होने की सम्भावना भी जताई गई है।
कथावस्तु और भौगोलिक स्थान के उपरांत यहाँ एक और पहलू का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। मर्यादापुरुषोत्तम और नित्य शांत रहने वाले राम को क्रोध क्यों आया? रामायण में स्वयंवर के पश्चात राम परशुरामजी पर क्रोधित हुए थे। वनवास में चित्रकूट निवास के समय काकासुर सीता जी की मर्यादा से खिलवाड़ करने की कोशिश करता है और तब राम क्रोधित हो जाते हैं। ऐसे ही कुछ अपवाद प्रसंगों में राम का क्रोधित होना इस बात का प्रमाण है कि धर्म पालन एवं कर्तव्य निर्वहन करने में आने वाली कोई भी रूकावट सर्वथा अस्वीकार्य है। मर्यादा का अर्थ कायरता कतई नहीं होना चाहिए। अति की परिस्थितियों में क्रोध भी आवश्यक है और श्रीराम ने वही किया।
Friday, August 7, 2020
विश्व पटल पर श्री राम की महिमा ।
प्रभु श्री राम के महिमा सिर्फ़ भारत, श्रीलंका या नेपाल तक ही सीमित नहीं है, किंतु श्री राम का प्रभुत्व समग्र विश्व में विराजमान है और बौद्ध, जैन,सिख समुदाए में भी राम के चरित्र का वर्णन मिलता है।
1. Itlay and rome
कुछ विद्वानो की माने तो संस्कृत में कई जगह पर ‘अ’ को ‘ओ’ के रूप में लिखा जाता है। तो लोग दावा करते हैं कि रोम का तात्पर्य राम से है। इतिहास के पन्नो में रोम की स्थापना 21 अप्रैल 753 ईसा पूर्व बताईं गई है। इस तारीख को दर्ज करने का कारण यह बताया जाता है कि 21 अप्रैल को 753 ईसा पूर्व में रामनवमी थी। लेकिन, इटली के संस्थापक कौन थे? Etruscans civilization, जो की रोम की प्राचीन सभ्यता मानी गई है, उन्हें ही इटली का संस्थापक माना गया है। इटली में ईसा पूर्व 7वी शताब्दी में खुदाई के समय जो मिला उसका चित्र नीचे देख सकते हैं आप।
2. Russia-
1948 में अलेक्जेंडर बारानिकोव ने पहली बार रामायण का रूसी भाषा में अनुवाद किया। तब से रूस शायद एकमात्र यूरोपीय देश है जहां वाल्मीकि रामायण ने रूसी में कई हज़ार प्रतियाँ बेची हैं। रामनवमी समारोह में कई हजार लोगों भगवान राम को प्रार्थना और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
राम का महत्व आप इस बात से लगा सकते है कि रूस के वोल्गा क्षेत्र के एक पुराने गाँव में खुदाई के दौरान एक प्राचीन विष्णु की मूर्ति मिली जो की 7वी शताब्दी की बताई जाती है।
3. Thailand-
थाईलैंड में रामायण को रामकियेन कहा जाता है जो थाईलैंड की राष्ट्रीय पुस्तक भी है।प्रारंभिक थाईलैंड की राजधानी को अयोध्या कहा जाता था, जिसका नाम अयोध्या रखा गया था। थाईलैंड के राजा खुद को श्री राम के वंशज मानते थे।थाईलैंड के अंतिम शासक वंश को राम कहा जाता है।
4. Cambodia-
raemeker जिसे रामाकीर्ति भी कहा जाता है, कम्बोडियन महाकाव्य कविता है,जो संस्कृत के रामायण महाकाव्य पर आधारित है। नाम का अर्थ है "राम की महिमा"। यह बौद्ध विषयों के लिए हिंदू विचारों को स्वीकार करता है और दुनिया में अच्छाई और बुराई के संतुलन को दर्शाता है।
5. Myanmar (burma)-
म्यांमार में रामायण को 'यमायण' कहा जाता है जो अनौपचारिक रूप से बर्मा का राष्ट्रीय महाकाव्य है, इसे यम (राम) ज़ताडव (जातक) भी कहा जाता है। बर्मा में, राम को 'यम' के रूप में उच्चारित किया जाता है, और सीता को 'मी थिदा' कहा जाता है।
6. Japan -
जापान में रामायण के दो संस्करण हैं, एक को 'Hobutsushu' कहा जाता है, और दूसरे को 'Sambo-Ekotoba' कहा जाता है।
7. China-
राम की अरिष्ट जातक कथाएँ चीन में लोकप्रिय हैं, रामायण का सबसे पहला ज्ञात ज्ञान बौद्ध ग्रन्थ Liudu ji jing में पाया गया था।चीनी समाज पर रामायण का प्रभाव एक वानर राजा, सूर्य Wukong के लोकप्रिय लोकगीत से स्पष्ट होता है, जो रामायण से हनुमान के समान है।
8. Philippines-
फिलीपींस में रामायण को Maharadia Lawana कहा जाता है। फिलीपींस का Singkil का प्रसिद्ध नृत्य वहाँ के रामायण से प्रेरित है।
9. Laos-
लाओस में लोगों की मान्यता के अनुसार लाओस, राम का पुत्र, लाव का शहर है। Phra Lak Phra Ram लाओ लोगों का राष्ट्रीय महाकाव्य है, और वाल्मीकि की रामायण से अनुकूलित है। लाओस में अभी भी मंदिर हैं जो रामायण के दृश्यों को चित्रित करते हैं।
10. Malayasia-
हिकायत सेरी राम हिंदू महाकाव्य 'रामायण' का मलय संस्करण है, हिकायत सेरी राम की मुख्य कहानी मूल संस्कृत संस्करण के समान है, लेकिन इसके कुछ पहलुओं को स्थानीय स्तर पर थोड़ा संशोधित किया गया है।
11. Indonesia-
दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश पर यहाँ भी लोग प्रबु राम से अछूते नहीं है। यह पर चार प्रकार की रामायण प्रचलित है- Kakawin Ramayana, Yogesvara Ramayana,Ramakavaca, Ramayana Swarnadwipa.
12. USA-
अमेरिका में रामायण के उपदेश पर एक कहानी प्रचलित है, जिसमें हनुमान को मध्य प्रदेश में एक सुरंग के माध्यम से पाताल लोक (दक्षिण अमेरिका) की यात्रा करने की कहानी सुनाते हैं, जबकि रावण के सौतेले भाई महिरावण द्वारा अपहरण किए गए राम और लक्ष्मण को बचाने की कोशिश करते हैं।
इसके अलावा mongolia, Egypt, Africa इत्यादि में भी राम या रामायण की कथाएँ मिल जाती है।
श्रीकृष्णार्जुन संवाद (गीता) को किस-किस ने सुना?
महाभारत ‘भीष्मपर्व’ के अंतर्गत ‘श्रीमद्भगवतगीता उपपर्व’ है जो भीष्मपर्व के तेरहवें अध्याय से आरम्भ हो कर बयालीसवें अध्याय में समाप्त होता है...
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कृपया थोड़ी सी बुद्धि एवं विवेक का उपयोग करें और सोचिये : हिरण का चर्म (चमड़ा) किसी के किस काम आता है? केवल कुछ शिकारी, अपनी तड़ी मारने के लिए ...
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महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार, श्रीकृष्ण के परमधाम जाने के बाद, अर्जुन नें श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र और श्रीकृष्ण की पत्नियों और द्वारिका ...
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श्रीमद भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण जी अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि पार्थ तुम भी आत्मिक योगबल के द्वारा अपनी अंतरात्मा में झांककर ...